पूर्व माध्यमिक परीक्षा, कक्षा-8 वीं
मॉडल प्रश्न-पत्र सेट-I
विषय- हिंदी
समय : 2 : 30 घंटे
पूर्णांक : 80
निर्देश- 1. सभी प्रश्न हल करना अनिवार्य है।
2. प्रश्नों के लिए निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए - (12)
प्रश्न 1. विजयबेला एकांकी की घटना किस समय की है -
(अ) सन् 1854
(ब) सन् 1853
(स) सन् 1857
(द) सन् 1858.
उत्तर- (स) सन् 1857
प्रश्न 2. लेखक चोर नहीं था, इस बात का विश्वास दिलाने के लिए उसने अपना-
(अ) परिचय पत्र दिखाया
(ब) जन्म प्रमाण पत्र दिखाया
(स) बस टिकट दिखाया
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर- (अ) परिचय पत्र दिखाया
प्रश्न 3. दैहार क्या है-
(अ) ऋषियों का आश्रम
(ब) किन्नरों का आश्रम
(स) असुरों का निवास स्थान
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर- (ब) किन्नरों का आश्रम
प्रश्न 4. हिरोशिमा और नागासाकी नामक स्थान कहाँ स्थित है-
(अ) भारत
(ब) श्रीलंका
(स) पाकिस्तान
(द) जापान।
उत्तर- (द) जापान।
प्रश्न 5. "तीर-तकार" का अर्थ है -
(अ) साथ-साथ
(ब) आस-पास
(स) दूर-दूर
(द) जीत-हार।
उत्तर- (ब) आस-पास
प्रश्न 6. ऊषा का विलोम शब्द है -
(अ) दिन
(ब) रात
(स) संध्या
(द) निशा।
उत्तर- (द) निशा।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (6)
प्रश्न 7. कुँवर सिंह ने अपनी बाँह काटकर गंगाजी में क्यों अर्पित कर दी ?
उत्तर-कुँवर सिंह की बाँह पर अंग्रेजों की गोली लगी जिसके कारण उसका जहर फैलता जा रहा था, चूँकि फिरंगी की गोली से उनका शरीर अपवित्र हो गया था इसलिए काटकर गंगाजी को अर्पित कर अपना शरीर पवित्र करना चाहते थे।
प्रश्न 8. "उन्हें क्या मालूम कि जो उनके लिए अंधेर है, वह मेरे लिए महाअंधेर है।" लेखक ने महाअंधेर किसे कहा है ?
उत्तर-लेखक चलते-चलते इतना थक गया था कि उन्हें आराम की सख्त आवश्यकता थी। रात्रि हो चुकी थी वह इस शहर में अजनबी और अकेला था। ऐसे में उन्हें सहारा देना छोड़, चोर होने का आरोप व शक करते हुए थाने भेजने की बात हो रही थी। इसे लेखक ने महाअंधेर कहा है।
प्रश्न 9. बरसाती नदिया-नरवा के पानी ल कइसे रोके जा सकत हे ?
( बरसाती नदी-नाले के पानी को कैसे रोका जा सकता है?)
उत्तर-बरसाती नदिया-नरवा के पानी ल रोके बर ओखर पाट (तीर) म जमीन के भीतर म बाँध बना देना चाही। येखर से बरसात के बोहाय पानी ह ओमा सकलाय रही।
(बरसाती नदी-नालों के पानी को रोकने के लिए उसके किनारे जमीन के भीतर बाँध बना देना चाहिए। इससे वर्षा का बहने वाला जल उसमें संगृहीत रहे।)
लघु उत्तरीय प्रश्न (20)
प्रश्न 10. (क) शिखंडी कौन थे और क्यों प्रसिद्ध हुए ?
उत्तर-शिखंडी महाराज द्रुपद के पुत्र व द्रोपदी के भाई थे जो किन्नर थे। शिखंडी की प्रतिभा और कौशल को देखकर श्रीकृष्ण ने उसे महाभारत के युद्ध का सेनापति बनाया था। गीता के पहले अध्याय में लिखा है-शिखंडी च महारथः अर्थात् शिखंडी एक महान महारथी था।
(ख) निम्नांकित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए - (कोई 4)
संसार, नदी, पृथ्वी, समुद्र, माँ, गाय।
उत्तर- संसार –जग, जगत
नदी –सरिता, सरि
पृथ्वी –धरा, धरती
समुद्र–सागर, सिन्धु
माँ–जननी, माता
गाय –धेनु, सुरभि ।
(ग) इस वाक्य में एक वाक्य आया है- "एक बात से प्रेम झरता है, दूसरी बात से झगड़ा होता है।" इस कथन को पाठ में दिये गये उदाहरणों में से कोई उदाहरण लिखकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-उपर्युक्त कथन निम्न उदाहरणों से सिद्ध होता है- राजा ने स्वप्न देखा कि उसके दाँत टूट गये हैं। ज्योतिषियों से फल पूछा, एक ने कहा-राजन आप पर संकट आने वाला है। आपके सभी सम्बन्धी और प्रियजन आपके सामने एक-एक करके मर जायेंगे।
दूसरे ज्योतिषी ने कहा- आप अपने सारे सम्बन्धियों और प्रियजनों से अधिक काल तक सुख-ऐश्वर्य भोगेंगे।
(घ) 'जो मैं नहीं बन सका' शीर्षक पाठ में लेखक की इच्छा क्या-क्या बनने की थी ?
उत्तर- 'जो मैं नहीं बन सका' शीर्षक पाठ में लेखक की इच्छा पेंटर, गेटकीपर, हेडमास्टर, चपरासी, पहलवान, जादूगर और इसके अलावा बस ड्राइवर, हलवाई, दर्जी, सड़क कूटने वाले इंजिन का इंचार्ज, थानेदार, नौटंकी पर डांसर, सर्कस का जोकर, आइस्क्रीम बेचने वाला आदि-आदि बनने की थी; और अंत में लेखक बन गये।
(ङ) अमरीकी राष्ट्रपति शिक्षक के माध्यम से अपने पुत्र को क्या-क्या सिखलाना चाहते थे ?
उत्तर-अमरीकी राष्ट्रपति शिक्षक के माध्यम से अपने पुत्र को नेक इंसान, जनता के हित में काम करने वाले राजनीतिज्ञ, मेहनत से पैसे कमाना, राग-द्वेप से दूर रहना, मुसीबतों को हँसकर टालना, बदमाशों को काबू में करना, पक्का विश्वास, नेक व्यवहार, किताबों का महत्व, भीड़ से अलग चलने की हिम्मत, दूसरे की बात सुनकर अच्छाई को ग्रहण करने, दुःख में भी हँसना आदि सिखाना चाहते थे।
प्रश्न 11. निम्न उपसर्गों का प्रयोग कर दो-दो शब्द बनाइये-(5)
दुर, सद्, वि., परि, अनु ।
उत्तर-दुर –दुर्गम, दुराचारी
सद्– सद्-चरित्र, सद्गामी
वि–विजय, विनम्र
परि –परिष्कार, परिजन
अनु–अनुज, अनुराग।
प्रश्न 12. संधि विच्छेद कर नाम लिखिए - (कोई 5)
विद्यार्थी, सदैव, षडानन, सत्संग, मनोहर, निश्चय। (5)
उत्तर-विद्यार्थी - विद्या +अर्थी (स्वर संधि)
सदैव– सदा + एव (स्वर संधि)
षडानन – पट् + आनन (व्यंजन संधि)
सत्संग– सत् + जन (व्यंजन संधि)
मनोहर –मनः + हर (विसर्ग संधि)
निश्चय –निः +चय (विसर्ग संधि)।
प्रश्न 13. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताइये एवं वाक्यों में प्रयोग कीजिए। (5)
आड़े समय काम आना, अड़ जाना, आँखें खुलना, आँच न आने देना, काठ का उल्लू ।
उत्तर-आड़े समय काम आना - मुसीबत में सहायता देना।
प्रयोग-सच्चे मित्र ही आड़े समय में काम आते हैं।
अड़ जाना-न डिगना।
प्रयोग-संकल्पवान लोग अपनी बात पर अड़ जाते हैं।
आँखें खुलना - सतर्क होना।
प्रयोग अपने मित्र से धोखा खाकर रमेश की आँखें खुल गई।
आँच न आने देना-जरा सा नुकसान न होने देना या जरा भी कमी न आने देना।
प्रयोग-मोहन ने गरीबी में भी अपनी ईमानदारी पर आँच न आने दी।
काठ का उल्लू-बुद्ध ।
प्रयोग-गोपाल निरा काठ का उल्लू है।
प्रश्न 14. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए -(6)
जीभ ने दुनिया में बहुत बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभहोती तो तीन इंच की है, पर वह पूरे छह फीट के आदमी को मार सकती है। संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और उसके दुरुपयोग से स्वर्ग नरक में परिणित हो सकता है। भारत में विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था।
उत्तर-संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश श्री रामेश्वर दयाल दुबे रचित निबंध 'कटुक वचन मत बोल' से अवतरित किया गया है।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में श्री रामेश्वर दुबे ने वाणी के प्रयोग के परिणामों का वर्णन किया है।
व्याख्या- निबंधकार कहते हैं कि वाणी के दुरुपयोग ने संसार में बड़ी-बड़ी विपत्तियों को जन्म दिया है। जीभ होती तो बहुत छोटी है किन्तु वह अपने से बड़े व्यक्ति को मात दे देती है। मनुष्य ही संसार में ऐसा प्राणी है जिसे वाणी का सुंदर वरदान मिला है। इसका सदुपयोग किया जाता है तो धरती पर स्वर्ग का आनंद लिया जा सकता है, यदि वाणी का दुरुपयोग किया जाये तो स्वर्ग का आनंद दुख में परिणत हो जाता हैं। भारत में हुआ महाभारत युद्ध भी इसी वाणी के दुरुपयोग का ही परिणाम है।
विशेष-वाणी की महत्ता का सुन्दर वर्णन व्यक्त है।
अथवा
सत्य कभी-कभी कड़वा होता है। कुछ बातें कहनी ही पड़ती हैं, किन्तु ऐसे अवसर पर होना यह चाहिए कि बात भी कह दी जाय और उसमें वह कडुवाहट न आने पाये, जो दूसरे के हृदय को विदीर्ण कर देती है। जरूरी नहीं है कि जीभ की कमान से सदा वचनों के बाण छोड़े जायें। वाक् चातुरी से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है।
उत्तर-संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश श्री रामेश्वर दयाल दुबे रचित निबंध 'कटुक वचन मत बोल' से अवतरित किया गया है।प्रसंग-वाक् चातुर्य की महत्ता का वर्णन किया गया है।व्याख्या-यह बात सही है कि सत्य वचन हमेशा कडुवा होता है। कुछ बातें ऐसी होती है जिन्हें कहना अति आवश्यक होता है। किन्तु ऐसी जरूरी बातें ऐसे अवसर पर कहना चाहिए, जिससे सुनने वाले के मन में कडुवाहट न हो और वह बात सुनकर हृदय से निराश न हो तब आपकी बात भी पूरी हो जायेगी और सुनने वाला दुखी भी नहीं होगा, क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि जीभ से कठोर बातें ही कही जायें। वाक् चातुर्य से कटु सत्य को भी मधुर बनाकर कहा जा सकता है।
विशेष-वाणी के संयम के लाभ व हानि का सुन्दर चित्रण है।
प्रश्न 15. निम्नलिखित पद्यांश का संदर्भ प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए -(6)
आज मनुज को खोज निकालो। जाति, वर्ण, संस्कृति, समाज से, मूल व्यक्ति को फिर से चालो। देश-राष्ट्र के विविध भेद हर, धर्म-नीतियों में समत्व भर, रूढ़ि-रीति गत विश्वासों की अंध-यवनिका आज उठा लो। आज मनुज को खोज निकालो।
उत्तर-संदर्भ-प्रस्तुत पद्म खण्ड सुमित्रानंदन पंत रचित 'मनुज को खोज निकालो' नामक कविता से अवतरित किया गया है।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र की अनेकता समाप्त कर एकता स्थापित करने की बात कही गई है।
व्याख्या- कवि पंतजी लिखते हैं कि आज मनुष्य ने अपने. बीच अनेक दीवारें खड़ी करके मनुष्य-मनुष्य को बहुत सारे वर्गों में बाँट दिया है। इन बँटे वर्गों में कवि सच्चे मनुष्य की खोज करना चाह रहा है।
कवि पंत जी कहते हैं कि राष्ट्र में व्याप्त जातिगत, वर्णगत एवं सामाजिक भेद को मिटाकर लोगों के धर्म एवं नीतियों में समता स्थापित करो। रूढ़ियों एवं अंध विश्वासों की भावना का पर्दा जो की आँखों में लगा है उसे उठा लो या समाप्त कर दो। मनुष्य मात्र एक है, यह अच्छी तरह समझकर एक-दूसरे को अपना लो। कवि आह्वान करते हैं कि आज मानवता को खोज निकालो।
विशेष-सामाजिक भेदों को मिटाकर एकता बनाने का संदेश दिया गया है।
अथवा
चितै-चितै चारों ओर चौंकि चौंकि परें त्योंही, जहाँ-तहाँ जब-तब खटकत पात है। भाजन सो चाहत, गँवार ग्वालिन के कछु डरनि डराने से उठाने रोम गात हैं ।। कहैं 'पदमाकर' सुदेखि दसा मोहन की, सेष हू, महेस हू, सुरेस हू, सिहात हैं। एक पाँय भीत, एक पाँय मीत काँधे धरें, एक हाथ छींकौ एक हाथ दधि खात हैं।
उत्तर-संदर्भ-प्रस्तुत पद्यांश छत्तीसगढ़ भारती के 'ब्रजमाधुरी' नामक पाठ से लिया गया है इसके कवि पद्माकर जी है।
प्रसंग-पद्यांश की इन पंक्तियों में कवि ने श्री कृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि लिखते हैं कि श्री कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ ग्वालिनों द्वारा रखे दही को खाने जा रहे हैं, कृष्ण हर बात की टोह लेते हुए और सबसे बचते हुए अपने बाल सखाओं के साथ ग्वालिन के घर जाते हैं। इस समय उनको ग्वालिन का डर है और इस डर के कारण उनके रोम-रोम खड़े हो गये। कृष्ण को चौकन्ना होते देखा एवं डर से भागते देखा इन सब लीलाओं को देखकर कवि आश्चर्यचकित हो रहे हैं। कृष्ण जो सब कुछ हैं जो सर्वपालन हार है उन्हें देखकर आश्चर्य कर रहे हैं। कृष्ण छिके से दही खाने के लिए अपने एक सखा के पीठ पर चढ़कर दूसरे सखा के कन्धे पर पैर रखकर छीके पर पहुँच जाते हैं। एक हाथ से छीका पकड़ दही खा रहे हैं, कृष्ण के इस रूप को देखकर कवि को अपूर्व आनन्द की प्राप्ति हो रही है।
विशेष-दही चुराते हुए श्री कृष्ण की शरारत भरी लीला का सुन्दर वर्णन किया गया है।
प्रश्न 16. आपका नाम रूपेश कुमार है, आप शा. उ. मा. वि. भाटापारा में पढ़ते हैं। अपने प्रधान अध्यापक को एक पत्र लिखिए जिसमें शिक्षण शुल्क मुक्ति हेतु निवेदन किया गया है।(5)
उत्तर-
सेवा में,
श्रीमान प्राचार्य महोदय शा. उ. मा. विद्यालय
अकलतरा
विषय-शिक्षण शुल्क मुक्ति हेतु प्रार्थना पत्र।
आदरणीय महोदय,
विनम्र निवेदन है कि मैं आपकी शाला में कक्षा 8वीं (अ) का विद्यार्थी हूँ। मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वे हम सब भाई बहनों की पढ़ाई का व्यय वहन कर सकें। अतः मैं शिक्षण शुल्क मुक्ति हेतु प्रार्थी हूँ। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी 85% से अधिक अंक अर्जित करूँगा।
धन्यवाद।
दिनांक 1/9/20..
आपका आज्ञाकारी शिष्य अतुल कुमार
कक्षा 8वीं (अ)
अथवा
अस्वस्थता अवकाश के लिए प्रधानाध्यापक को आवेदन पत्र लिखिए।
सेवा में,
श्रीमान प्रधानाध्यापक महोदय
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सोनसरी
विषय-अस्वस्थता अवकाश के लिए आवेदन पत्र।
आदरणीय महोदय,
मुझे कल से ही तीव्र ज्वर है इसलिए मैं शाला आने में असमर्थ हूँ। डॉक्टर साहब ने मलेरिया ज्वर बताया है और कुछ दिन का अवकाश लेने का सुझाव दिया है।
अतः निवेदन है कि मुझे 5 अगस्त से 12 अगस्त 20.... तक अवकाश प्रदान किया जाये।
धन्यवाद ।
दिनांक 5/8/20..
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मनोज पाण्डेय
कक्षा आठवीं
प्रश्न 17. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 150 से 200 शब्दों में निबन्ध लिखिए -(10)
1. दूरदर्शन और उसका महत्व
2. ग्राम्य जीवन
3. राष्ट्रीय एकता
4. मेरी पाठशाला
5. वर्षा ऋतु ।
उत्तर-
1. दूरदर्शन और उसका महत्व
दूरदर्शन आज कल्पना की वस्तु न होकर ठोस वास्तविकता है। आज लगभग हर घर में दूरदर्शन है और गरीब और अमीर सभी घर बैठे-बैठे सात समन्दर पार की घटनाओं को देखने का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं।
दूरदर्शन के आविष्कार का श्रेय श्री बेयर्ड महोदय को है। ये स्कॉटलैंड के रहने वाले थे। इन्होंने सन् 1926 में दूरदर्शन का आविष्कार कर लिया था, इसका प्रचार और प्रसार द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ही हुआ। हमारे देश में दूरदर्शन का प्रथम प्रदर्शन सन् 1958 में नई दिल्ली में किया गया था। उस समय दिल्ली में औद्योगिक व विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यह भारतीयों के लिए उस समय सबसे आश्चर्यजनक बात थी। धीरे-धीरे इसका प्रचार होता गया।
मध्यप्रदेश में दूरदर्शन का प्रथम आगमन छत्तीसगढ़ में हुआ। सन् 1978 में उपग्रह द्वारा कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू हुआ। उन दिनों अधिकांश कार्यक्रम केवल शैक्षणिक एवं ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित होते थे पर आजकल दूरदर्शन अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित करने लगा है। इनसे न केवल हमारा मनोरंजन होता है, अपितु ज्ञानवर्धन में भी हमारे सहायक होते हैं।
दूरदर्शन में ध्वनि, प्रकाश और फोटोग्राफी का कमाल देखने को मिलता है। यह मनोरंजन का सबसे सस्ता और प्रभावशाली साधन है। इसमें घर बैठे हम सम्पूर्ण विश्व के क्रियाकलापों को देखते हैं। चाहे वह इराक व ईरान का युद्ध हो, आस्ट्रेलिया में खेला जाने वाला क्रिकेट मैच हो या जालन्धर में खेला गया कोई नाटक हो या फिर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन।
विज्ञान के इस अद्भुत चमत्कार ने सम्पूर्ण विश्व को एक छोटे से डिब्बे में समेट दिया है। आप स्विच ऑन कीजिए और अपना मनचाहा कार्यक्रम देखिए।
दूरदर्शन की महिमा का बखान कहाँ तक किया जाये। इसका शैक्षणिक उपयोग भी है और मनोरंजन के रूप में भी। इससे प्रसारित होने वाले अनेक महत्वपूर्ण धारावाहिक कार्यक्रमों ने हमारे लोक-जीवन को बड़ी गहराई से प्रभावित किया है। इन प्रमुख धारावाहिकों में हम लोग, बुनियाद, करमचन्द आदि विशेप लोकप्रिय हुए। 'रामायण' धारावाहिक का तो कहना ही क्या है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, किसी भी मुहल्ले में आप चले जाइये लोग तन्मयता से रामायण देखते मिल जाते थे। छात्रों के लिए प्रश्न मंच व राष्ट्रीय शैक्षिक व अनुसन्धान द्वारा प्रसारित कार्यक्रम अत्यन्त उपयोगी है। कवि सम्मेलन, परिचर्चायें आदि साहित्यिक ज्ञान में वृद्धि करते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि दूरदर्शन एक मार्गदर्शक की तरह हमारे सामाजिक व राष्ट्रीय जीवन को विकसित करने में मददगार सिद्ध होगा।
2. ग्राम्य-जीवन (हमारा गाँव)
जगमग नगरों से दूर, हैं जहाँ न ऊँचे खड़े महल।
टूटे-फूटे कुछ कच्चे घर, दिखते खेतों में चलते हल। परई पालों खपरैलों में, रहिमा-रमुआ के नामों में, है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गाँवों में।
मेरे गाँव का नाम नवागाँव जिला बिलासपुर है। मेरे गाँव की प्राकृतिक शोभा-ग्राम्य-जीवन का स्वाभाविक आनन्द है। गाँवों की विशेषता है उसके लहलहाते हुए खेत, छोटे-छोटे लिपे-पुते घर, उपवन आदि। यहाँ नगरों-सा थकाने वाला कोलाहल नहीं होता। सर्वत्र शान्ति का वातावरण होता है, प्रकृति की गोद में पला हुआ हमारा गाँव नैसर्गिक जीवन का आदर्श प्रस्तुत करता है। इन गाँवों में ही हमारा अन्नदाता किसान रहता है, जो जीवन के कठोर संघर्ष में जुटा हुआ सुख और शान्ति के लिए प्रयत्नशील है। प्रकृति की शोभा उसके बहुत से अभावों व कष्टों को भुला देती है।
गाँव की जलवायु स्वच्छ एवं स्वास्थ्यकर होती है। यहाँ प्रायः सभी लोग स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट होते हैं। यहाँ के जीवन में फैशन तथा बनावटी चमक-दमक नहीं होती। गाँव में विभिन्न प्रकार के लोग जैसे-बढ़ई, मोची, लुहार व अन्य शिल्पकार अपने कार्यों द्वारा छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। मेरे गाँव के लोगों की कुर्ता, अंगरखा, साफा आदि की साधारण-सी सस्ती वेश-भूषा होती है। यहाँ अलावों, चौपालों, तालाबों, खेतों पर ग्रामीण गायकों और वाचकों के मुख से आल्हा के गीत, भजन एवं लोकनृत्य आदि ही स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं। यहाँ का निवासी थोड़े में अपना निर्वाह कर लेता है। कवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-
"अहा ग्राम्य-जीवन भी क्या है ?
क्यों न इसे सबका मन चाहे, थोड़े में निर्वाह यहाँ है,
ऐसी सुविधा और कहाँ है ?"
इन सबके होते हुए भी हम देखते हैं कि भारत में गाँवों की दशा अच्छी नहीं है। दुर्गुणों, बुराइयों, रूढ़ियों और हानिकारक रीति-रिवाजों ने ग्राम्य-जीवन के सरल आनन्द में बहुत कमी कर दी है। इस गाँव में चिकित्सा का अभाव है। शिक्षा के अभाव एवं दरिद्रता ने उनकी कमर तोड़ दी है। हमें प्रयास करना चाहिए कि हमारे गाँव सही अर्थों में स्वावलम्बी बनें। चकबन्दी, सहकारी बैंकों का सही उपयोग करें, सिंचाई की व्यवस्था करें, शिक्षा का व्यापक प्रयास करें, छुआछूत, अन्धविश्वास और बेकारी को दूर करें।
3. राष्ट्रीय एकता
प्रस्तावना- हमारा देश कई राज्यों के मेल से बना एक संघीय देश है। यहाँ अनेक धर्म, जाति और भापा के लोग निवास करते हैं। इसके बाद भी हमारे देश में राष्ट्रीय एकता है, क्योंकि सांस्कृतिक गतिविधियाँ तथा परम्पराएँ एक हैं। भारतीय संविधान, धर्म निरपेक्ष है तथा उसने समूचे देश के रहने वालों को एकता के सूत्र में पिरो दिया है। संविधान एक तथा नागरिकता भी एक ही है। विभिन्न प्रदेश, राष्ट्र-शरीर के अंग सदृश हैं। प्रदेशों की उन्नति ही राष्ट्रीय उन्नति है।
एकता ही बल है-एकता ही बल है। बिना एकता के कोई भी काम पूरा नहीं होता है। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। एक-एक ईंट को जोड़ने से महल बनता है तथा रेशे-रेशे को जोड़कर मजबूत रस्सी बनती है, जो एक शक्तिशाली हाथी को बाँधने में समर्थ होती है। इसी तरह जब तक देशवासी संगठित नहीं होंगे, तब तक राष्ट्रीय एकता सम्भव नहीं। मुट्ठी खुली रहे तो शक्ति नहीं रहती, बँधने से उसमें ताकत आ जाती है।
पारस्परिक शत्रुता- देश में यदि भाषा, धर्म, जाति के नाम पर झगड़े होते हैं तो एकता नष्ट होती है। जयचंद तथा पृथ्वीराज की पारस्परिक शत्रुता ने मुहम्मद गोरी को भारत आने का आमंत्रण दिया था तथा भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना हुई थी। राजपूत आपस में लड़ते रहे और मुसलमानों ने भारत में अपने पाँव जमा लिए, इसी तरह हिन्दू-मुसलमान झगड़ते रहे तथा अंग्रेज भारत पर शासन करते रहे। पारस्परिक शत्रुता को छोड़कर जब तक देश एक नहीं होगा, तब तक देश की उन्नति सम्भव नहीं है। आज भी देश में राष्ट्रीय एकता एक समस्या बन गई है। लोग उस एकता को तोड़ने में लगे हुए हैं।
एकता ही सम्पत्ति है - एकता को देश की मूल्यवान सम्पत्ति माना गया है। अणुओं के मेल से ब्रह्माण्ड बना है। कई फूल मिलकर माला बनाते हैं। कई सदस्यों से परिवार बनता है। परिवारों से गाँव, गाँवों से जिला, जिला से प्रदेश और प्रदेशों को मिलाकर देश बनता है। नौ नक्षत्रों ने मिलकर सौर मण्डल की रचना की है। अतएव एकता, मनुष्य, समाज और राष्ट्र के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उसके अभाव में उन्नति की कल्पना नहीं की जा सकती। एकता के अभाव में घर कैसे टूटता है, देश कैसे उजड़ता है, इसकी अनेक घटनाएँ हमारी आँखों के सामने हैं।कर्त्तव्यों का निर्वाह-मनुष्य, सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना स्वयं उसका कोई महत्व नहीं है। वह समाज में रहकर उच्च मानवीय गुणों को प्राप्त करता है। जब तक उच्च जीवन मूल्य व्यक्तियों में नहीं होगा, तब तक संगठित समाज का निर्माण नहीं हो सकता तथा सुगठित समाज के बिना एक संगठित राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती । अतएव नागरिकों के कर्त्तव्य ही देश की उन्नति के लिए प्रमुख आधार हैं। जिस देश के नागरिक कर्तव्यशील हैं आज वे देश विश्व में चोटी के स्थान पर हैं। अतएव राष्ट्रीय एकता के लिए नागरिक कर्त्तव्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्त्व है।
उपसंहार-आज हम भारतवासियों का यह कर्त्तव्य है कि व्यक्तिगत, जातिगत, धर्मगत तथा भापागत स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के कार्य करें। ताकि राष्ट्र में एकता की स्थापना हो तथा राष्ट्र का समुचित विकास सम्भव हो। आज क्षेत्रवाद तथा अलगाववाद भी देश को तोड़ने में लगे हैं। हमें उन्हें भी दूरकर भावनात्मक एकता की स्थापना करनी है। अनेकता में एकता हमारी संस्कृति की विशेषता है। इस संस्कृति को अपनाकर ही हम राष्ट्रीय एकता को पा सकते हैं।
4. मेरी पाठशाला
मैं जिस विद्यालय में पढ़ता हूँ उसका आदर्श है-विद्या, विनय, विवेक। उस आदर्श विद्यालय का नाम है- सतता सुन्दरी कालीबाड़ी उच्चतर माध्यमिक शाला। यह शाला शिक्षा के केन्द्र-स्थल रायपुर नगर में है। यहाँ छात्रों के चतुर्मुखी विकास का निरन्तर प्रयास किया जाता है। इस शाला का स्वरूप, संचालन, व्यवस्था सब कुछ आदर्श है। यहाँ विद्यालय की समस्त शक्ति, विद्यार्थी के चरित्र निर्माण में लगती है। विभिन्न प्रकार के खेलों, व्यायाम, उत्तम शिक्षा, उपदेश, अभ्यास और अनुकरण द्वारा विद्यार्थियों का शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास किया जाता है। अध्यापकों एवं छात्रों के बीच निकट का सम्बन्ध रहता है। वहाँ विद्यार्थियों के अभिभावकों की सम्पत्ति और सुझावों से पूर्ण लाभ उठाया जाता है।
इस शाला में समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जिससे कि प्रतिभाओं को उभरने का पूरा अवसर मिले। अभिनय, वाद-विवाद, लेखन, भापण, चित्रकला, संगीत, खेल आदि सभी में यह विद्यालय सदैव से ही विशेप योग्यता प्रदर्शित करता आया है।
मेरी शाला में अनुशासनहीनता की समस्या नहीं है, क्योंकि यहाँ के विद्यार्थी अनुशासन का कठोरता से पालन करने में सदैव ही तत्पर रहते हैं। ऐसे उत्तम वातावरण में पढ़कर बहुत-सी अच्छी बातें सीखी जा सकती हैं।
मेरी शाला में 20 शिक्षक हैं। वे सभी स्वभाव से नम्र एवं हँसमुख हैं तथा अपने विषय में प्रवीण हैं। अध्यापक ही छात्रों का निर्माणकर्ता है। हमारी शाला में अध्यापकों को पूर्ण सम्मान दिया जाता है। हमारी शाला में न केवल शिक्षक, वरन् हमारी शाला के अन्य कर्मचारी भी गुणी हैं और एक-दूसरे को सहयोग देने को सदा तत्पर रहते हैं। हमारे प्राचार्य महोदय भी नम्र, शालीन एवं विषय के प्रकाण्ड विद्वान हैं। शरारती बालक को अनुशासित बना देना उनके बायें हाथ का खेल है।
विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास के लिए हमारी शाला में एक पुस्तकालय भी है जिसमें प्रायः सभी विषयों से सम्बन्धित पुस्तकें हैं। वहाँ हम प्रतिदिन समाचार-पत्र भी पढ़ते हैं।
इस प्रकार मैं कह सकता हूँ कि मेरी पाठशाला एक आदर्श विद्यालय है। यह मुझे अत्यन्त प्रिय है। इस शाला में अध्ययन करते हुए में अत्यन्त गौरव अनुभव करता हूँ।
5. वर्षा ऋतु
ग्रीष्म की प्रचंड गर्मी से तपती हुई धरती पर जब वर्षा की फुहारें पड़ती हैं तो धरती की प्यास बुझती है, नये अंकुर फूट पड़ते हैं, चारों ओर हरियाली छा जाती है और निर्जीव धरा में नव जीवन का संचार हो जाता है। वर्षा की पहली फुहार पड़ते ही मिट्टी की सोंधी गंध चारों ओर फैल जाती है और कण-कण में जीवन फूट पड़ता है।
वर्षा ऋतु में चारों ओर मनोरम दृश्य दिखाई देते हैं। घनघोर काले बादलों से आकाश ढँक जाता है। कभी-कभी इन्द्रधनुष की सतरंगी छटा से आकाश का सौन्दर्य और मनोरम हो जाता है।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है और हमारी कृषि मानसून पर निर्भर है, इसलिए यहाँ वर्षा ऋतु का महत्व और अधिक है। वर्षा प्रारम्भ होते ही किसान खेती के कार्य में जुट जाते हैं। वीरान खेतों में चारों ओर हल बैल दिखाई देने लगते हैं। वर्षा ऋतु में गाँव का दृश्य बहुत ही सुहाना रहता है। शहरों में वर्षा ऋतु में चारों ओर सड़कों में पानी भर जाता है। लोग छाते और बरसाती पहनकर घर से बाहर निकलते हैं। जहाँ पानी निकलने की व्यवस्था नहीं होती वहाँ चारों ओर कीचड़ भर जाता है और गन्दगी में मच्छर पनपने लगते हैं। जिससे मलेरिया का खतरा बढ़ जाता है।
वर्षा से अनेक लाभ हैं। अन्न की उपज वर्षा पर ही निर्भर है, नदी, नाले, तालाब आदि में पानी की पूर्ति वर्षा से ही होती है और धरती पर चारों ओर हरियाली छा जाती है।
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