हिंदी कक्षा 8वीं पाठ 21 सिखावन

 पाठ 21 सिखावन (दोहा)


छत्तीसगढ़ी शब्द मन के हिन्दी अर्थ

का होगे के साथ छा - क्या हो गया, मितान = मित्र, घपटना = सघनता जाना, महर-महर = सुगंध से अंधकार, नइ = नहीं, आसा = बिसवास = विश्वास, निहरके बदना = महकना, अँधियार = आशा, अबिरथा = बेकार, झुककर, बारना = जलाना, = (क्रिया) अनुष्ठान के साथ मानना (संज्ञा) मनौती, मिलखी मारत = पलक झपकते, गुरतुर = मीठा, फँद जाना फँस जाना, एकरे = इसी का, लबारी - झूठ, पक्का = निश्चित्, = लबरा = झूठा, ठिहा-ठिकाना = मंजिल, गन्तव्य, सतवंता सत्यवादी, सार = निचोड़, सत बर = सत्य के लिए, संमुद्र = समुद्र, परान = प्राण, कोत = तरफ, ओर, घाम = धूप, पल्ला मारना = तेज गति के साथ, (दौड़ना), रद्द = रास्ता, उछाह = उत्साह, नवा = नया, चाँटी = चींटी, लाखन-लाखन = लाखों- लाख, घलो = भी ।

प्रमुख पद्यांशों की व्याख्या

1. का हो गे के रात हे, घपटे हे अँधियार ! 

आसा अउ बिसवास के, चल तयँ दीया बार !

संदर्भ- यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के "सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - कवि ने इन पंक्तियों में आशा एवं प्रकाश की महिमा पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि क्या हुआ अगर रात में अंधकार छाया हुआ है तुम आशा और विश्वास रूपी दिया जला लो, व्यर्थात् मनुष्य के जीवन में कितनी भी विपत्तियाँ क्यों न आ जाये, हें हिम्मत नहीं हारना चाहिए तथा हृदय में आशा और विश्वास नाये रखना चाहिए।

2. एके अवगुन सौ गुन ल, मिलखी मारत खाय। 

गुरतुर गुन वाला सुवा, लोभ करे फँद जाय।

संदर्भ -यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग-कवि ने इन पंक्तियों में (अवगुण) लालच के परिणामों प्रकाश डाला है।

व्याख्या - कवि कहते हैं मनुष्य का एक अवगुण उसके सौ गुणों को पलक झपकते ही नष्ट कर देता है, जिस प्रकार तोता मीठे फल के लालच में पड़कर शिकारी के जाल में फँस जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य के अवगुण, उसके सद्‌गुणों को निगल लेते हैं, अतः मनुष्य को "लालच" रूपी अवगुण से बचकर रहना चाहिए।

3. मीठ-लबारी बोल के, लबरा पाये मान। 

पन सतवंता ह सत बर, हाँसत तजे परान।

संदर्भ -यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - कवि ने इन पंक्तियों में मनुष्य के सच एवं झूठ गुणों पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि एक झूठा व्यक्ति झूठ बोलकर मान-सम्मान प्राप्त करता है तथा एक सत्यवादी सत्य के लिए हँसते हँसते अपने प्राण त्याग देता है। अर्थात् एक झूठा के झूठ बोलने से उसे समाज में मान- प्रतिष्ठा मिलती है और एक सत्य व्यक्ति के सच बोलने पर उसे जीवन से हाथ धोना पड़ता है अर्थात् मृत्यु नसीब होती है।

4. घाम-छाँव के खेल तो, होवत रहिथे रोज। 

एखर संसो छोड़ के, रद्दा नवाँ तँय खोज।

संदर्भ -यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - कवि ने इन पंक्तियों में मनुष्य के जीवन में आने वाले सुख-दुख पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि व्यक्ति के जीवन में धूप-छाँव का खेल हमेशा होते ही रहता है। इसलिए व्यक्ति को इसकी चिन्ता छोड़कर अपने नये रास्ते की खोज करना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में धूप व छाँव की तरह सुख-दुख आते ही रहते हैं। व्यक्ति को इसकी चिन्ता किये बिना अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ना चाहिए, अपना लक्ष्य तय करना चाहिए।

5. लाखन-लाखन रंग के, फूलथे फूल मितान।

 महर-महर जे नइ करें, फूल अबिरथा जान।

संदर्भ - यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - कवि के अनुसार व्यक्ति को सुख-दुःख मैं एक- दूसरे का सहारा देने पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मित्र लाख-लाख रंग के फूल खिलते हैं पर जिस फूल में सुगंध नहीं होता वह फूल बेकार है, अर्थात् इस संसार में कई तरह के लोग रहते हैं पर जो दूसरे के लिए काम आये, दूसरे के सुख-दुख में भाग ले उसी व्यक्ति का होना सार्थक कहलाता है। जो दूसरे के काम न आये, सुख-दुख में सहारा न बने ऐसा व्यक्ति का होना निरर्थक है।

6. सब ला देथे फूल-फर, सब ला देथे छाँव । 

अइसन दानी पेड़ के, परो निहरके पाँव।

संदर्भ - यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य के जीवन में बड़े बुजुर्गों की महत्ता को बताया है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि पेड़ हमें फल, फूल तथा छाया देते हैं। ऐसे दानी पेड़ को हमें झुककर प्रणाम करना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि घर में बड़े बुजुर्ग भी इसी पेड़ की भाँति होते हैं ये हमारी सारी आवश्यकताओं को पूरी करते हैं। ऐसे बड़े बुजुर्ग व्यक्ति का हमें सम्मान करना चाहिए। उनकी हर बात मानना चाहिए।

7. तैं किताब के संग बद, गंगाबारू मीत। 

एखरे बल म दुनिया ल पक्का लेबे जीत।

संदर्भ- यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने किताब को सफलता की कुंजी बताया है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि तुम किताब के साथ मित्रता कर लो, क्योंकि इसी किताब के जरिये तुम दुनिया को पक्का जीत सकते हो अर्थात् किताब पढ़कर तुम आगे बढ़ सकते हो। तुम दुनिया को हासिल कर सकते हो, किताब में इतनी शक्ति होती है।

8. ठाड़े ठाड़े नइ मिले, ठिहा ठिकाना-सार 

समुद्र कोत नँदिया चले, दउड़त पल्ला मार।

संदर्भ -यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग - कवि ने इस पंक्ति में कार्य पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि खड़े-खड़े व्यक्ति को उसकी मंजिल नहीं मिल जाती। नदियाँ भी तेजगति से बहते हुए समुद्र की ओर आती हैं अर्थात् व्यक्ति को अपना लक्ष्य पाने के लिए कर्म करना चाहिए। यूँ ही बिना कार्य किए किसी को मंजिल नहीं मिल जाती।

9. हे उछाह मन म कहूं, पिए बर कुछु ज्ञान का मन? 

चाँटी घलो, पाहि गुरु के मन।

संदर्भ -यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक भारती के"सीखावन" नामक पाठ से ली गई है।

प्रसंग- कवि ने इस पंक्ति में गुरु की महिमा का बखान किया है।

व्याख्या- कवि अपने उत्साहित मन में कहते हैं कि अगर तुम्हें ज्ञान प्राप्त करना है तो गुरु का सम्मान करो। क्या मनुष्य व चींटी भी गुरु का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् गुरु बिना किसी को भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता, इसलिए हमें गुरु का सम्मान करना चाहिए, उनकी श्रद्धा करनी चाहिए।

प्रश्न और अभ्यास

पाठ से

1. खाल्हे लिखाव प्रश्न मन के उत्तर लिखव -

प्रश्न 1. हमला चाँटी ले का-का सीखावन मिलथे ओरिया के लिखव ?

उत्तर - हमला चाँटी ले रात-दिन मेहनत करे के सिखावन मिलथे। एक छोटकन चाँटी जब दाना लेके अपन दीवार में चढ़थे त सौ बार फिसल के गिरथे पर वो हा हिम्मत नइ हारय, बराबर अपन काम में लगे रहिथे अउ अंत म वह दाना लेके दीवार म चढ़ेबर सफल हो जाथे ।

प्रश्न 2. ठाढ़े-ठाढ़े ठिहा-ठिकाना नड़ मिलय कवि के भाव ल बने अरथा के लिखव।

उत्तर-ठाढ़े-ठाढ़े ठिहा-ठिकाना नइ मिलय कवि के यह भाव हे के बिना मेहनत किये बिना खड़े-खड़े कोनो ला ओकर मंजिल नइ मिलय। मनखे ला अपन मंजिल ला पायेबर जी तोड़ मेहनत करे ला पड़थे। नंदिया ला भी सागर से मिलेबर तेज गति से दउड़त पल्ला मारना पड़थे। बिना मेहनत के कोनो ला ओखर लक्ष्य नइ मिलय।

प्रश्न 3. काकर बल म ये दुनिया ल जीत जा सकता है, अउ "दुनिया ल जीतना" का मतलब क्या है?

उत्तर - किताब के बल में दुनिया ल जीते जा सकत है। किताब के द्वारा ही व्यक्ति में ज्ञान के संचार होथे, देश-विदेश के जानकारी होथे, इही दुनिया ल जीते के अर्थ हे।

प्रश्न 4. पेड़ ल दानी काबर कहे गे हे ?

उत्तर - पेड़ ह हमला छाया, फल, फूल औषधि देथे, इहि खातिर पेड़ ल दानी कहे गेहे।

प्रश्न 5. "घाम-छाँव के खेल" के अर्थ ल बने समझ के लिखव।

उत्तर - घाम छाँव के खेल के अर्थ हे कि मनखे के जीवन में सुख-दुख लगे रहिथे। मनखे ल दुख या विपत्ति से घबराना नइ चाही काबर कि दुख के बाद सुख आहि यही सोच के छाँव रूपी रद्दा खोजना चाही।

प्रश्न 6. 'रात' अउ 'अँधियार' के अर्थ कवि के अनुसार का हो सकत है ?

उत्तर- रात अउ अँधियार के अर्थ कवि के अनुसार दुख व विपत्ति हो सकत है।

प्रश्न 7. 'आसा अउ विश्वास के दिया बारना' के भाव ल लिखव।

उत्तर- आसा अउ बिसवास के दिया बारना के भाव ये है के जेन मनखे अपन जीवन से हार गे है, जेकर जीवन ल निरासा ह घेर ले हे। उखर जीवन म आसा अउ बिसवास पैदा करना है।

पाठ से आगे

प्रश्न ।. एके अवगुन सौ गुन ल, मिलखी मारत खाय। गुरतुर गुल वाला सुवा, लोभ करे, फँद जाँय ।। इसका संदर्भ क्या हो सकता है व इससे आप कहाँ तक सहमत है। विचार कर लिखिए।

उत्तर- कवि कहते हैं मनुष्य का एक अवगुन उसके सौ गुणों को पलक झपकते ही नष्ट कर देता हैं, जिस प्रकार तोता मीठे फल के लालच में पड़कर शिकारी के जाल में फँस जाता है हमारी राय है कि मनुष्य के अवगुणों, उसके सद्‌गुणों को निगल जाता है, अतः मनुष्य को "लालच" रूपी अवगुण से बचकर रहना चाहिए।

प्रश्न 2. जीवन बर आसा अउ बिसवास ल कवि ह जरूरी बताय हे तुमन रूपी भी सोच बिचार कर लिखव।

उत्तर- जीवन में अंधकार चारों तरफ फैला है, तुम आशा और विश्वास रूपी दिया जला लो हमारे विचार है कि मनुष्य के जीवन में कितनी भी विपत्तियाँ क्यों ना आ जायें, उन्हें हिम्मत नहीं हारना चाहिए, तथा मन में आशा और विश्वास बनाये रखना चाहिए।

भाषा से

प्रश्न 1. कविता अउ लेख के भाषा म बड़ अंतर होथे। कविता के भाषा अउ लेखक के भाषा ल पढ़व अउ गुनव। कविता म शब्द भले कमती होथे, फेर ओकर अर्थ ह बड़े होथे। एमा कमती शब्द म बड़ गहरी बात ल कहे के उदिम कवि ह करे रहिथे। एकरे सेती कविता के शब्द म लुकाय भाव अउ विचार ल बने समझे ल परथे। एकर छोड़, कवि ह अपन भाषा ल गहना-गुरिया घलो पहिराथे तेला 'अलंकार' कहे जाथे। जइसे -

(क) आसा अउ ब्रिसवास के दीया।

(ख) गुरतुर-गुन ।

पहली डाँड़ ल पढ़व अउ गुनव। दिया ह माटी के बनथे, फेर कवि ह आसा अउ विसवास के दिया बनाये हे। एकर माने, कवि

ह आसा औ बिस्वास ल दिया के रूप दे होवै। ये ह 'रूपक' अलंकार के उदाहरण हैं।

अब दुसरड्या म दू शब्द के जोड़ी हवय-गुरतुर अउ गुन। दूनो शब्द के शुरू ह 'ग' अक्षर ले होय है। अइसन प्रयोग ल' अनुप्रास अलंकार' कहिथे ।

(क) लाखन-लाखन ।

(ख) ठाढ़े-ठाढ़े।

उत्तर- महर-महर जे नइ करे (पुनरुक्ति प्रकाश)

सब ला देथेफूल फर (अनुप्रास अलंकार) ठोढ़े-ठाढ़े नइ मिलाय, ठिहा-ठिकाना सार (अनुप्रास अलंकार) फूलथे फूल मितान (अनुप्रास अलंकार)।

प्रश्न 2. खाल्हे लिखाय मुहावरा मन ला अपन वाक्य म प्रयोग करव -

मिलखी मारना - पुलिस के तीर चोर ह मिलखी मारत भाग गिस ।

मीठ लबारी बोलना- मीठ लबारी बोल के लबरा ह मान

पाथे।

पल्ला मारना - समुंद से मिलेबर नंदिया ह दउड़त पल्ला मारथे।

प्रश्न 5. उल्टा अर्थ वाला शब्द लिखव -

अँधियार-उजेला। आसा -निरासा।

लबरा - सतवंता । छाँव -धूप । जीत - हार।

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