पाठ 19 कटुक वचन मत बोल
–श्री रामेश्वर दयाल दुबे
शब्दार्थ - जिज्ञासु = जानने की इच्छा करने वाला, पूछताछ करने वाला, प्रयाग = इलाहाबाद, विदीर्ण = बीच से फाड़ा हुआ, टुटा हुआ, भग्न, वाक्चातुरी = हाजिर जवाब, कुदरत = प्रकृति या ईश्वरीय शक्ति, विचलित = अस्थिर, चंचल, सख्ती = कठोरता, कड़ाई, कहर = आफत, विपत्ति, दीर्घजीवी = लम्बी उम्र या आयु वाला।
प्रमुख गद्यांशों की व्याख्या
1. "अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं है,
तो फिर सब बुरा ही बुरा है।"
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक भारती के " कटुक वचन मत बोल" नामक पाठ से लिया गया है इसके लेखक श्री रामेश्वर दयाल दुबे जी हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में श्री रामेश्वर दुबे ने वाणी का प्रयोग के परिणामों का वर्णन किया है।
व्याख्या - लेखक कहना चाहता है कि यदि हमारे शरीर में जीभ अच्छी नहीं, अर्थात् हमारी वाणी में यदि मधुरता नहीं होगी तो हम दीर्घजीवी नहीं हो सकते, अतः हमें अपनी वाणी में मधुरता लाना अत्यन्त आवश्यक है, इसके परिणाम अति भयंकर होते हैं। जो व्यक्ति नम्र होता है वह ज्यादा समय तक जीवन जीता है। लुकमान के अनुसार भी उक्त कथन उतनी ही सत्यता को उजागर करता है।
2. "कुदरत को नापसन्द है सख्ती जबान में,
इसलिये तो दी नहीं हड्डी जबान में"
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक भारती के "कटुक वचन मत बोल" नामक पाठ से लिया गया है इसके लेखक श्री रामेश्वर दयाल दुबे जी हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में वाक् चातुर्य की महत्ता का वर्णन किया है।
व्याख्या - स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने विनम्र स्वभाव और मधुरवाणी के लिये प्रसिद्ध थे, वे हमेशा कहते थे कि अपनी जबान को क्यों खराब करते हो वे कहते थे कि ईश्वर को यह कतई पसन्द नहीं की हम अपने व्यवहार में सख्ती लाएँ, अतः हमें जीभ में हड्डी प्रदान नहीं की, अतः जीभ की आयु भी दाँतों की तुलना में अधिक होती है।
प्रश्न और अभ्यास
पाठ से
प्रश्न 1. लुकमान ने बकरे के शरीर के सबसे अच्छे व बुरे हिस्से के चयन में जीभ ही को क्यों चुना ?
उत्तर-लुकमान ने बकरे के शरीर के सबसे अच्छे व बुरे हिस्से के चयन में जीभ को ही इसलिये चुना, क्योंकि जीभ दीर्घजीवी होती है, यह हमारे बोले जाने पर निर्भर करता है चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का विचार भी यही है कि जो नम्र होता है वह ज्यादा समय तक जीवन को जीतता है।
प्रश्न 2. चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के कथन के जरिए लेखक क्या बताना चाहता है ?
उत्तर-चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के कथन अनुसार जो नरम स्वभाव का होता है वो अधिक समय तक जीवित रहता है। जीवन में वही विजय प्राप्त करता है। कठोर व्यक्ति कभी भी नष्ट हो सकता है। उसे पराजय ही हाथ लगती है। लेखक यही बताना चाहते हैं।
प्रश्न 3. लेखक ने हृदय तोड़ने वाले को क्षमा न देने की बात क्यों कही है ?
उत्तर- लेखक ने हृदय तोड़ने वाले को क्षमा न देने की बात इसलिए कही है, क्योंकि कटुक वचन हृदय में तीर के समान वार करते हैं। इसलिए सदा-सदा से कहा जाता है कि किसी का हृदय अपनी कटुवाणी से विचलित मत करो 'मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर' उक्त पंक्ति द्वारा समझाया जा सकता है।
प्रश्न 4. किसी के द्वारा प्रयोग किए कठोर वचन शरीर में चुभते हैं क्यों ? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर - कठोर वचन शरीर में तीर के समान चुभते हैं। - इसलिये सदा से कहा जाता है कि किसी का हृदय अपनी कटुवाणी से विचलित मत करो। मंदिर, मस्जिद तोड़ने वाले को क्षमा मिल सकती है, परन्तु कठोर वचन हृदय तथा मन पर घाव कर देते हैं। प्रस्तुत पंक्ति इसी भाव को प्रदर्शित करती है- "कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि करै तन छार"
प्रश्न 5. श्रीमती शास्त्री का क्रोध का पारा किस शेर को सुनकर नीचे उतर गया ?
उत्तर - श्रीमती शास्त्री का क्रोध इस शेर को सुनकर नीचे उतर गया।
'जो बात कहो, साफ, हो, सुथरी हो भली हो।
कड़वी न हो, खट्टी न हो, मिश्री की डली हो।"
प्रश्न 6. श्री लाल बाहादुर शास्त्री जी ने शेर के माध्यम से अपनी पत्नि को क्या समझाने का प्रयास किया, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने शेर के माध्यम से अपनी पत्नी को समझाया कि सभी बातें नहीं हो सकती जो दूसरों को प्रिय लगे बात ऐसी बालो जो मन को ठेस न पहुँचायें किसी को दुःखी करने वाली बात ना बोलो हमेशा मीठा बोलो।
प्रश्न 7. दोनों ज्योतिषियों ने राजा की एक ही बात कहीं, उनके कहने के तरीके में आपको क्या अंतर लगता है।
उत्तर - पहले ज्योतिषी ने स्थिति से अवगत कराया तथा दूसरे ने वास्तविकता (सच बोलकर) राजा के मन को सरलता से इसलिए कहा कि दाँतों के कठोर होने से हमारे विचार भी कठोर हो जायेंगे, परन्तु यदि दाँत न हो तो हमारी वाणी में मधुरता के कारण हम अपने प्रियजनों को अधिक समय तक भोग सकेंगे।
प्रश्न 8. लोकप्रिय बनने के लिए आपको क्या करना होगा ?
उत्तर - लोकप्रिय बनने के लिए अपनी वाणी में मधुरता लानी होगी तभी लोकप्रिय व्यक्तित्व का विकास होगा तथा यह सपना पूरा होगा अन्यथा यह सपना अधूरा रह जायेगा। स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने विनम्र स्वभाव और मधुरवाणी के लिये लोकप्रिय थे।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. जीभ कोमल है, दाँत कठोर है। जिसमें लचीलापन होता है, जो नम्र होता है। वह अधिक समय तक जीता है।
उत्तर- जीभ कोमल है अर्थात् हमारी वाणी में कोमलता होनी चाहिये तभी हम दीर्घजीवी होंगे, जिस व्यक्ति की वाणी कठोर होती है वह दीर्घजीवी नहीं होता, अतः हमारी वाणी में कोमलता होनी चाहिये। ईश्वर को भी कठोरता पसंद नहीं, अतः हमारी जबान में हड्डी नहीं दी।
प्रश्न 2. वाणी तो सभी को मिली हुई है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है। ऐसा कहा जाता है। क्या आप इस तरह के लोगों से मिले हैं जो बातें करते समय बिना सोचे-समझे बोल जाते हैं। उनके बारे में लिखिए।
उत्तर-वाणी तो सभी को मिली हुई है परन्तु क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें इस कला को बहुत कम लोग जानते हैं वाणी का सही प्रयोग करना भी एक कला है इसके दो अलग-अलग पहलू हैं एक से प्रेम झरता है दूसरे से झगड़ा होता है इसके सदुपयोग से पृथ्वी पर स्वर्ग उतर सकता है। साधुओं की वाणी पानी के समान निर्मल है, जो अमृत के समान प्रतीत होती है।
प्रश्न 3. लुकमान के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं, कि जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा ही बुरा है। तर्क सहित अपने विचार रखिए।
उत्तर- लुकमान के इस कथन का आशय है कि जिस व्यक्ति की जुबान ठीक नहीं है, उसके लिए कुछ ठीक नहीं है। जो व्यक्ति सदैव कटु वचन बोलता है, उसे कड़वा ही सुनना पड़ता है और पग-पग में कटु अनुभव से गुजरना पड़ता है।
प्रश्न 4. 'एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है।' इस तरह के अनुभव आप सभी के भी होंगे इसके बारे में बात कर लिखिए।
उत्तर- एक बात से प्रेम झरता है, दूसरी बात से झगड़ा होता है। हम जो भी बात कहें साफ-सुथरी हो, भली हो तथा सुनने पर मिश्री के समान प्रतीत हो अर्थात् प्रेम की अनुभूति हो। इसी बात को स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपनी पत्नी को बड़े ही सुन्दर ढंग से समझाया तथा कहा कि ईश्वर को वाणी में कठोरता बिल्कुल भी पसंद नहीं इससे कलेश का बढ़ना निश्चित है, अतः वाणी में कोमलता का होना आवश्यक है।
प्रश्न 5. वाक् चातुर्य से कटु वचन को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है, इस बात पर विचार करते हुए अपनी समझ को लिखिए।
आशय - वाक् चातुरी से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है, क्योंकि कटु वचन दूसरे के हृदय को विदीर्ण कर देते हैं, सामने वाले व्यक्ति को विचलित न करके भी अपनी बात कही जा सकती है सार यह है कि वाक्चातुरी से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है।
प्रश्न 7. कड़वी बात ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं- कोई पौराणिक या ऐतिहासिक घटना को आधार बनाकर इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिये -
उत्तर - कड़वी बात ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये। उनमें से महाभारत में घटित घटना द्रौपदी का चीरहरण भी है। शकुनी द्वारा द्युत क्रीड़ा में धोखा देना तथा अंत में पत्नी को दाँव पर लगाना एक ज्वलंत प्रमाण है। द्युत क्रीड़ा में धोखे से हारने के बाद बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ा। साथ ही द्रोपदी द्वारा यह कहना की अंधे का बेटा अंधा यह उपहास ही महाभारत की घटना का मुख्य आधार था।
भाषा से
प्रश्न 2. पाठ में आए कुदरत, जुबान नापसंद, शेर, सख्ती जैसे विदेशी शब्दों के पर्यायवाची शब्द (किसी शब्द-विशेष के लिए प्रयुक्त समानार्थक शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्द समानाथीं होते हैं किन्तु भाव में एक-दूसरे से किंचित भिन्न होते हैं।) खोज कर वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर - 1. कुदरत – ईश्वर, भगवान, प्रकृति।
वाक्य - आज मोहन छत से गिरते गिरते बचा ये उसके लिए कुदरत का करिश्मा है।
2. जबान - जीभ, जिह्वा।
वाक्य - हमारी जबान में हड्डी नहीं होती।
3. नापसंद - नाखुश ।
वाक्य - मेरी माता जी को झूठ बोलना नापसंद है।
4. शेर - दोहा।
वाक्य - मेरे पापा मुझे शेर सुनाते हैं।
5. सख्ती - जटिल, कठिन।
वाक्य - कक्षा आठवीं के प्रश्न बहुत कठीन है।
प्रश्न 3. वाक्य संरचना को समझने के लिए निम्नलिखित उदाहरणों को देखिए।
6. दीर्घजीवी शब्द दीर्घ + जीवी दो शब्दों से मिलकर बना है। इसी प्रकार दो शब्दों को मिलाकर पाँच नये शब्द बनाइये ।
जैसे- काम + चोर से बना कामचोर ।
उत्तर-
पर + जीवी = परजीवी
कीर्ति + मय = कीर्तिमय
राज + शाही = राजशाही
राज + भवन = राजभवन
रसोई + घर = रसोईघर ।
प्रश्न 7. इस पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिये -
सारांश-कहा जाता है कि वाणी तो सभी को मिली है किन्तु बोलना हर एक को नहीं आता उटपटाँग, बोल देने का परिणाम कभी-कभी बहुत बुरा होता है। कड़वा बोलने का कारण महाभारत का युद्ध था। प्रस्तुत कहानी में जीभ के महत्व को लुकमान ने बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है, यदि शरीर में जीभ अच्छी हो तो फिर अच्छा ही अच्छा है। चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के अनुसार जीभ कोमल होने के कारण दीर्घजीवी होती है। दाँत कठोर है। जिसमें लचीलापन होता है वह नम्र होता है।
जीभ मात्र तीन इंच की होती है, पर वह पूरे छह फीट के आदमी को मार सकती है। विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था।
जरूरी नहीं की जीभ की कमान से सदा वचनों के बाण ही छोड़े जायें वाकचातुरी से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है।
यदि वाणी कठोर है, तीखी है, कर्कश है, तो उसे सुधारिये, मीठी बनाइये अन्यथा लोकप्रिय व्यक्तित्व का सपना अधूरा ही रह जायेगा, अतः हमें अपनी वाणी में कटुकवचन का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
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