हिंदी कक्षा 8वीं पाठ 18 ब्रज -माधुरी

पाठ 18 ब्रज -माधुरी

कविवर पद्माकर/हरिश्चन्द्र/बेनी

प्रमुख पद्यांशों की व्याख्या

1. चितै-चितै चारों ओर चौंकि-चौंकि परें त्याँही,

जहाँ-तहाँ जब-तब खटकत पात है।

भाजन सो चाहत गँवार ग्वालिनी के कछू, 

डर्रान डराने से उठाने रोम जात हैं ॥

कहें 'पदमाकर' सुदेखी दसा मोहन की, 

सेष हो, महेश हो, सुरेस हो सिहात हैं। 

एक पाँय भीत, एक पाँय मिट काँधे धरें, 

एक हाथ काँधे धरें, एक हाथ काँधे धरें।

एक हाथ छींकौ एक हाथ दधि खात हैं।

–पद्माकर

शब्दार्थ - चितै-चितै = मन,

चौंकि = चौंककर,

 जहाँ-तहाँ = यहाँ-वहाँ, 

खटकत = खटकता है,

दसा = अवस्था ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्य खण्ड धनाक्षरी पद्माकार द्वारा रचित काव्य संग्रह 'ब्रज माधुरी' से अवतरित किया गया है।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में माखन चोरी का वृत्तान्त है।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कविवर प‌द्माकर मोहन (कृष्णा) द्वारा दही चोरी की घटना का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जब मोहन और उसके साथी दही चोरी करने छुपते-छुपते थोड़े ही आवाज पर चौंकते हुए ग्वाल, ग्वालिनी को डराने पर जिनका रोम-रोम गाने लगता है ऐसे मोहन अपने मित्र, शेष, महेश, सुरेश जो उनको सुहाते हैं, के साथ दही चोरी करने के लिये एक पैर को मित्रों के कंधे पर रखते हैं और दूसरे पैर से दीवाल का सहारा लेकर एक हाथ से दही के छीके को पकड़कर दूसरे हाथ से दही निकालकर खाते हैं और अपने प्रिय मित्रों को भी खिलाते हैं।

2. पंकज कोस में भृंग फस्यौ,

करतौ अपने मन यों मनसूबा

होइगो प्रात उफंगे दिवाकर,

जाऊँगो धाम पराग ही खूबा।

'बेनी' सो बीच ही और, 

भई नहिं काल को ध्यान न जान अजूबा

आय गयंद चबाय लियौ,

रहियो मन-ही-मन यों मनसूबा ॥

–बेनी

शब्दार्थ - पंकज = कमल, भृंग = भाँरा, फस्यौ = फँसना, मनसूबा = मन की इच्छा, अजूबा = आश्चर्य, गर्यद = गया।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्य खण्ड कवि बेनी जी के द्वारा रचित काव्य संग्रह 'ब्रजमाधुरी' से अवतरित है।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में भौरें की मनःस्थिति का सुन्दर वर्णन किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कविवर बेनी द्वारा भौरें की  दैनिक दिनचर्या के साथ मानसिक परिस्थिति का सुन्दर चित्रण किया है। कवि कल्पना करते हैं कि संध्याकाल जब भौंरा कमल के फूल पर परागकण एकत्र करने हेतु बैठता है तो कमल के स्वाभाविक गुणानुसार सूर्य अस्त होने पर कमल की पंखुड़ियाँ सिकुड़कर बंद हो जाती है और भौरा उसमें फँस जाता है। उस पर भौरा काल को ध्यान में न रखकर बिना डर के आशावादी बना यह विचार करता है कि प्रातःकाल सूर्य देवता उगेंगे तब प्रकृतिनुसार कमल का फूल खिल जायेगा और मैं परागकण लेकर घर चला जाऊँगा। कवि बेनी द्वारा सुन्दर कल्पना की गई है कि विपरीत समय में भी अपना धैर्य न खोते हुए बिना डरे प्रकृति को जानते हुए अपने आप को आशावादी बनाये रखता है।

3. सखी हम काह करें कित जायें।

बिनु देखे वह मोहिनी मूरति नैना नाहिं अघायें।

बैठत उठत सयन सोवत निस चलत फिरत सब ठौर।

नैनन तें वह रूप रसीलो टरत न इक पल और।

सुमिरन वही ध्यान उनको ही मुख में उनको नाम।

दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम।

सब ब्रज बरजौ परिजन खीझौं हमरे तो अति प्रान।

हरीचन्द हम मगन प्रेम-रस सूझत नाहिं न आन ।। 

संदर्भ - प्रस्तुत पद्य खण्ड कवि हरिश्चन्द्र द्वारा रचित काव्य संग्रह "ब्रज माधुरी" से ली गई है।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में गोपीयों के मनोदशा का सुन्दर वर्णन किया गया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि गोपी अपनी सखियों से कहती है सखी मैं क्या, करूँ और कहाँ जाऊँ। जब तक उनकी वह मोहनी मूरत नहीं देख लेती मेरा मन नहीं भरता उठते, बैठते, सोते, जागते, चलते फिरते हर समय बस आँखों में उनकी मनमोहक छवि बसी रहती है। हर पल उनका ही ध्यान मन में रहता है। और मुँह में उनका ही नाम रहता है। मन को मोहने वाले घनश्याम के बीना मेरा जीवन व्यर्थ है। सभी ब्रज वासी और परिवार वाले बोल- बोल कर मेरे प्राण लेते हैं। मुझ पर गुस्सा करते है, लेकिन श्री कृष्ण के प्रेम में मेरा मन इस तरह डूबा हुआ है कि मुझे उनके सिवाय कुछ दूसरा सुझता ही नहीं। उनके प्रेम में इतना डूब गये कि कुछ और सुहाता ही नहीं।

प्रश्न और अभ्यास

पाठ से

प्रश्न 1. "चितै-चितै चारों ओर" इस छंद में कौन बार- बार चौंककर इधर-उधर देख रहा है और क्यों ?

उत्तर- इस छंद में कृष्ण और उसके साथी बार-बार चौंककर इधर-उधर देख रहे हैं कि उन्हें माखन चोरी करते हुए कोई देख तो नहीं रहा है।

प्रश्न 2. कमल में भौंरा कैसे बंद हो गया ?

उत्तर-कमल में भौंरा इसलिये बंद हो गया, क्योंकि प्रकृतिनुसार कमल की पंखुड़ियाँ शाम को बंद हो जाती है, भौंरा उसी समय परागकण एकत्र करने बैठा था, तो वह अंदर बंद हो गया।

प्रश्न 3. कमल में बंद भौंरा मन-ही-मन क्या सोच रहा था ?

उत्तर- मल में बंद भौरा मन ही मन सोचता है कि प्रातः काल सूर्योदय के बाद कमल खिलेगा तब मैं पराग लेकर चला जाऊँगा।

प्रश्न 4. भौरें की इच्छाओं का अंत कैसे हुआ ?

उत्तर- प्रातःकाल सूर्योदय पर जब कमल खिला तभी भौरे की इच्छाओं का अंत हुआ।

प्रश्न 5. नैन अघाने का क्या आशय है ?.

उत्तर- नैन अघाने का आशय है कि कृष्ण की मोहनी मूरत जब तक नहीं देख लेती मेरा मन नहीं भरता।

प्रश्न 6. नायिका अपनी सखी से मन की किन दुविधाओं का उल्लेख करती है ?

उत्तर - नायिका अपनी सखी से अपने मन की दुविधा का उल्लेख करती है, कहती है सखी से क्या करूँ, कहाँ जाऊँ जब तक मोहन की सूरत नहीं देखती तब तक मानों मेरी आँखों को संतुष्टि नहीं होती। मुझे मोहन ही मोहन सभी तरफ और हर समय दिखाई देते हैं।

प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए।

सुमिरन वहीं ध्यान उनको ही मुख में उनको नाम।

दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम ।

उत्तर- हर क्षण मेरे मन में उनकी ही छवि रहती है। मुँह में उनका ही नाम रहता है। मन को मोहने वाले घनश्याम के बिना मेरा जीवन व्यर्थ है।

पाठ से आगे

2. बाल श्री कृष्ण की लीलाओं को अपने बड़े-बुजुर्गों से सुना होगा पुस्तकों में पढ़ा होगा, जो लीला आपको प्रभावित करती है। उसे लिखकर कक्षा में सुनाइए।

उत्तर- एक फल वाली फल बेच रही थी फल ले लो री, फल ले लो, बाल कृष्ण ने आवाज सुनी और दौड़े-दौड़े गये और कहा मैया मुझे कुछ फल दे दो। मैया बोली- मैं फल दूँगी पर बदले में कुछ अनाज ले के आ जा। श्री कृष्णं अंदर गये दोनों मु‌ट्ठी में अनाज भर कर दौड़ते हुए आते हैं। रास्ते में थोड़ा-थोड़ा अनाज गिरते जाता है। मैया के पास पहुँचते हुए हाथों में दो-चार दाने ही बचते हैं। दो-चार दाने देख कर मैया कहती है। ये तो बहुत थोड़े से है। श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं। मैया मेरे हाथ बहुत छोटे हैं, जिससे सारे अनाज गिर गये ये दो-चार दाने ही बचे हैं। मैया दो-चार दानों को अपनी टोकरी में रखकर सारे फल बाल कृष्ण को दे देती है। और ये भूल जाती है कि फल ले लो री फल ये कहने लगती है "श्याम ले लो री श्याम" और अपने घर पहुँचती है। वहाँ जाकर टोकरी जैसे ही ऊपर से उतार कर रखती है। देखती है, अनाज के दोनों के जगह हीरें मोती से टोकरी भरी हुई है। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने फल वाली पर कृपा की।

भाषा से

1. ब्रज माधुरी पाठ ब्रजभाषा में लिखे गए हैं। ब्रजभाषा के निम्न शब्दों को छत्तीसगढ़ी में क्या कहते हैं ? ढूँढ़ कर लिखिए, जैसे - सिहात है, काँधे, पाँव, मीत, आजु लौ, कित, उरहानौ, होइगो, प्रात, सखी, बरजौ, खीजौ, काह।

उत्तर-

ब्रजभाषा छत्तीसगढ़ी भाषा

सिहात है = सुहात है

काँधे = काँधा, खांद

पाँव = गोड़

अजुलौ = आज ले

आजु = आज ले

मीत = मितान, पियारा

किट = कितना

उरहानौ = उलाहना

होइगो=  होंगे

प्रात  = बिहान

सखी  = संगवारी

2. चितै-चित चारों ओर चाँकि - चाँकि परै त्योंहि पंक्ति में 'च' वर्ण की आवृति हुई है जो अनुप्रास अलंकार है। इस अलंकार के अन्य उदा. कविता से ढूँढ़ कर लिखिए।

उत्तर- सेष हू, महेस हू, सुरेस हू, सिहात है।


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