मेरी भूटान यात्रा भाग– तीन
आज मैं आपको लिए चलती हूं भूटान की राजधानी थिम्फू की सैर पर।
भूटान यात्रा के तीसरे दिवस यानी 13 मई को हम ठिठुरती सुबह में अपने दैनिक कार्य से निवृत्त होकर जल्दी तैयार हो गए और अपना नाश्ता लिया जो प्रायः भारतीय नाश्ता ही होता था । जब तक हम अपना नाश्ता ले रहे थे तभी हमारा गाइड हमारे लक्जरी बस ले कर हमारा इंतजार करता हुआ दिखाई दिया जो हमे जल्दी चलने का इशारा कर रहा था।
नाश्ते के बाद हम निकल पड़े भूटान की राजधानी थिम्फू की सैर करने ।बस के सफर के दौरान नुदिप ने हमें थिम्फू के बारे में भी मनोरंजक जानकारी देते जा रहा था।
नुदिप ने बताया थिम्फू दुनिया की पाँचवीं सबसे ऊँची राजधानी है और जिसकी ऊँचाई 2,248 मीटर (7,375 फुट) से लेकर 2,648 मीटर (8,688 फुट) तक है। थिम्फू का अपना कोई हवाई अड्डा नहीं है और निकततम और भूटान का एकमात्र हवाई अड्डा यहाँ से लगभग 54 किलोमीटर (34 मील) की दूरी पर पारो में स्थित है।
थिम्फू में भूटान के अधिकांश महत्वपूर्ण राजनीतिक भवन स्थित हैं, जिसमें राष्ट्रीय सभा जो कि भूटान के नवगठित लोकतन्त्र प्रणाली का सदन है, और शहर के उत्तर में स्थित भूटान नरेश का आधिकारिक निवास डेचनचोलिंग महल शामिल है।
भूटान की संस्कृति पूरी तरह से इसके साहित्य, धर्म, रीति-रिवाजों, राष्ट्रीय परिधान संहिता, मठों, संगीत, और नृत्य, और मीडिया में परिलक्षित होती है। षेचू एक महत्वपूर्ण त्योहार है जब मुखौटा नृत्य, जिसे लोकप्रिय रूप से चाम नृत्य के नाम से जाना जाता है, थिम्फू में ताशिचो ज़ोंग के आंगन में किया जाता है। यह हर साल सितंबर या अक्टूबर में आयोजित होने वाला एक चार दिवसीय त्योहार है, जो भूटानी कैलेंडर के अनुसार चलता है।तीसरे भूटान नरेश जिग्मे दोरजी वांगचुक ने पुरानी छद्म सामंती व्यवस्थाओं में सुधार करते हुए कृषिदासता को समाप्त कर भूमि का किसानों में पुनर्वितरण किया और कराधान में सुधार किया। उन्होंने कई कार्यकारी, विधायी और न्यायपालिका सुधारों की शुरुआत की। सुधार जारी रहे और 1952 में राजधानी को पुनाखा से थिम्पू में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया। चौथे नरेश, जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने देश को विकास के लिए खोला और भारत ने इस प्रक्रिया में भूटान को वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करने के साथ आवश्यक प्रोत्साहन भी दिया । 1961 में, थिम्पू आधिकारिक रूप से भूटान की राजधानी बन गई।
चौथे राजा, जिन्होंने 1953 में राष्ट्रीय सभा (नेशनल असेंबली) का गठन किया, ने 1998 में जनता द्वारा चुने गए मंत्रियों की एक परिषद को सभी कार्यकारी शक्तियों को सौंप दिया। उन्होंने राजा पर अविश्वास मत देने की एक प्रणाली शुरू की, जिसने संसद को सम्राट को हटाने का अधिकार दिया। थिम्पू में राष्ट्रीय संविधान समिति ने 2001 में भूटान साम्राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करना शुरू किया। 2005 में, भूटान के चौथे राजा ने अपने राज्य की बागडोर अपने बेटे युवराज जिग्मे खेसर भाग्यल वांगचुक को सौंपने के अपने फैसले की घोषणा की। राजा का राज्याभिषेक नवीकृत चांग्लीमिथांग स्टेडियम थिम्पू में हुआ और वांगचुक राजवंश की स्थापना के शताब्दी वर्ष के साथ हुआ। 2008 में, इसने पूर्ण सकल राजतंत्र से संसदीय लोकतांत्रिक संवैधानिक राजतंत्र में परिवर्तन के लिए मार्ग प्रशस्त किया, और थिम्फू नई सरकार का मुख्यालय बन गया।
थिम्फू संबंधी बातचीत करते हुए अब हम पहुंच चुके थे वर्ल्ड लार्जेस्ट सिटिंग बुद्धा के प्रतिमा के समीप।
हम बस से नीचे उतरे हमें ठिठुरा देने वाली ठंड का आभास हुआ और हम कांपने लगे क्योंकि हम सामान्य कपड़ों में थे और अपने साथ ऊनी कपड़े नही ले गए थे।
जैसे - तैसे हम ऊंचाई पर स्थित मंदिर परिसर में प्रविष्ट हुए अनेकानेक कांस्य मूर्तियों से सुसज्जित परिसर को देख कर हमारी आंखे चौड़ी हो गई और साथ ही वहां से दिखाई देने वाली पर्वत,घाटियों के मनोहर दृश्य को देख कर हमारा हृदय रोमांचित हो गया।
लार्जेस्ट सिटिंग बुद्धा जिसे वहां के स्थानीय भाषा में ग्रेट बुद्ध दोर्डेनमा के नाम से जाना जाता है।
मंदिर के अंदर प्रवेश करते हुए निदुप ने इसके विषय में बताया की प्रतिमा का निर्माण चीन के नानजिंग स्थित एरोसन कॉर्पोरेशन द्वारा 47 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से किया गया है, जिसे सिंगापुर के व्यवसायी रिनचेन पीटर टेओ ने प्रायोजित किया था। पूरे प्रोजेक्ट की कुल लागत 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है। जिसमे आंतरिक भाग भी क्रमशः समायोजित था। प्रायोजकों के नाम ध्यान कक्ष में प्रदर्शित किए गए हैं जो महान बुद्ध दोर्डेंमा का सिंहासन है।
निदुप ने आगे बताया की ग्रेट बुद्ध दोर्डेनमा भूटान के पहाड़ों में एक विशाल शाक्यमुनि बुद्ध प्रतिमा है जो चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक की 60वीं वर्षगांठ मना रही है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर हमने देखा की उस प्रतिमा में एक लाख से अधिक छोटी बुद्ध प्रतिमाएँ थी, जिनमें से प्रत्येक, ग्रेट बुद्ध दोर्डेनमा की तरह ही, कांस्य से बनी है और सोने से मढ़ी हुई थीं। निदुप ने बताया कि यह ग्रेट बुद्ध दोर्डेनमा कुएन्सेल फोडरंग के खंडहरों के बीच स्थित है, जो तेरहवें ड्रुक देसी शेरब वांगचुक का महल है, जो भूटान की राजधानी थिम्पू के दक्षिणी रास्ते को बताता है। इसका निर्माण 2006 में शुरू हुआ था और इसे अक्टूबर 2010 में समाप्त करने की योजना थी, हालाँकि निर्माण 25 सितंबर 2015 तक पूरा नहीं हुआ था। यह दुनिया के सबसे बड़े बुद्ध प्रतिमा में से एक है, जो 169 फीट ऊँचा है और इसमें 100,000 8 इंच ऊँचे और 25,000 12 इंच ऊँचे सोने से मढ़े हुए कांस्य हैं। इस अचंभित कर देने वाले बौद्ध मंदिर से बाहर निकल कर हमने पुनः प्रकृति के सौंदर्य की निहारा और उसे हृदय में बसाकर बहुत सारे फोटो क्लिक कराने के उपरांत फिर से बस पर सवार हो कर आगे निकल पड़े। हमारे गाइड निदुप ने बताया की अगर हमें भूटानी सभ्यता और संस्कृति को समीप से देखना और समझना है तो उसका सबसे सबसे उत्तम साधन थिम्फू का सिंपली म्यूज़ियम है।
म्यूज़ियम पहुंच जाने पर हम सब बस से उतर कर वहां पर प्रति व्यक्ति 1100रुपए एंट्री फी देने के बाद एक युवा लड़के ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा में हमारा स्वागत करते हुए हमें प्रवेश कराया। म्यूज़ियम के अंदर प्रवेश के दौरान मुझे दिलचस्प बात यह लगी कि म्यूजियम का नेतृत्व युवाओं के एक समूह द्वारा किया जा रहा था, जिन्हें देश के भावी नेता माना जाता है। सिंपली भूटान म्यूजियम में हमें भूटानी जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया । जब हमने म्यूजियम के अंदर प्रवेश किया तो उस युवा ने हमें और अन्य आगंतुक का स्वागत स्थानीय आरा नामक चावल की शराब जिसे वे वाइन कह रहे थे पीला कर किया। जिसे वहां के स्थानीय भाषा में सुजा भी कहा जा रहा था। उन्होंने यह भी बताया की यह मादक पदार्थ की तरह नही होता जिस से नशा हो जाए ।इसे हर कोई सेवन कर सकता है किंतु फिर भी हमारे समूह में से केवल मेरे श्रीमान जी श्री संजय कुमार शर्मा , बेटे सौम्य शर्मा ,श्री अनिल डोगरा सर और सारंगढ़ DEO पटेल सर ने ही इसे ग्रहण किया क्योंकि वे इसका स्वाद अनुभव करना चाहते थे ।
नशीला पदार्थ न होने की बात पर मेरे बेटे ने भी इसे लेने के लिए हामी भर दी थी। अब हमने म्यूजियम के अंदर प्रवेश कर पाया की आगंतुकों को इसे कई हिस्सों विभाजित कर सैलानियों को भूटान की कहानी से परिचित कराने के लिए नकली गाँव के दृश्यों के माध्यम से उसे संचालित किया जा रहा था है। यहाँ टहलते हुए हमने भूटान के पारंपरिक परिधान में अपनी तस्वीरें क्लिक करवाई।
हमने यहां तीरंदाजी का भी अभ्यास कियाऔर भूटानी महिलाओं के साथ उनके दैनिक कार्य करते समय कुछ शास्त्रीय गीत पर उनके साथ मिलकर नृत्य भी किया। उस म्यूज़ियम में हमने बटर टी(एक पे पदार्थ )और Daisee (bhutani sweet yellow rice) भी खाया जो उनका पारंपरिक भोज्य पदार्थ है।म्यूज़ियम के अंदर और बाहर बहुत से फोटोज़ क्लिक कराने के बाद चूंकि दोपहर के एक बज चुके थे हमारे पेट के चूहों ने दस्तक देना प्रारंभ कर दिया और हम पहुंच गए।
थिंफू के मार्केट प्लेस पर जहां हमने पेट पूजा करने के साथ ही साथ अनेक दुकानों में खरीदारी कर खूब पैसे भी खर्च किए।
हम पुनः बस पर सवार हो कर अनेकानेक बौद्ध मंदिरों का दर्शन कर अतंत रमणीय स्थान पर पहुंचे जिसे चुज़ोम (संगम) कहा जाता है जहां थिम्पू नदी (वांग चू) और पारो नदी (पा छू) का मिलन होता है। और अंततः दोनों नदियां ब्रह्मपुत्र नदी में विलीन हो जाती हैं।चुज़ोम एक प्रमुख सड़क जंक्शन भी है, जिसमें दक्षिण-पश्चिम सड़क हा (79 किमी), दक्षिण सड़क fuentsholing (141 किमी) और उत्तर-पूर्व से थिम्पू (30 किमी) तक जाती है। यहां नदियों के मिलन से अत्यंत मनोहर दृश्य उपस्थित हो रहा था जिसे देखने दुनिया भर के सैलानी वहां उपस्थित थे।वहां नदियों पर लंबा पुल बना हुआ था जिस पर खड़े होकर हम नदियों का मिलन देख रहे थे साथ ही फोटो भी क्लिक करा रहे थे।अंततः हम पहुंच चुके थे थिम्फू के सबसे बड़े हैंडीक्राफ्ट बाजार में जहां से हमने स्थानीय कलाकारों द्वारा हाथ से बनाई गई अनेकों चीजे खरीदी ।
कहरीदारी करते हुए हमें शाम के पांच बज चुके थे ।निडुप ने हमें बताया की हमारा अगला गंतव्य स्थान पारो है जो यहां से 20 से 25 मिनट की दूरी पर है अतः हम सब पुनः बस में अपना स्थान ले कर अपने अगले गंतव्य स्थान की ओर बढ़ चले। और अलग - अलग व्यू पॉइंट्स को देखते हुए लगभग शाम के 6:30 में हमने पारो के अपने होटल ने विजिट किया। मुझे थकान हो रही थी अतः मैं भोजन करके सो गई किंतु मेरे अन्य साथी तैयार हो कर रात में मार्केट प्लेस चले गए जो हॉटल के नजदीक ही था।
अब अगले अंक में मैं आपको पारो की सैर कराऊंगी...
क्रमशः
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