हिंदी कक्षा 7वीं पाठ 16 काव्य माधुरी - संकलित

 पाठ 16 काव्य माधुरी

          - संकलित

पाठ परिचय - सूर , तुलसी , मीरा , रसखान और धरमदास हिन्दी साहित्य में भक्त- कवियों के रूप में जाने जाते हैं । इन सभी की रचनाओं का स्वर एक - सा है । वह स्वर है भक्ति का स्वर । सूर और रसखान ने ब्रजभाषा में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है । तुलसी ने अवधी में , राम - कथा तथा विनय पत्रिका के पद लिखे हैं । मीरा बाई ने राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में कृष्ण की लीलाएँ गायी हैं और धरमदास ने छत्तीसगढ़ी में भक्ति के पद रचे हैं । भाषा एवं छन्द अलग - अलग होते हुए भी इन सभी कवियों का वर्ण्य विषय समान है- राम या कृष्ण की भक्ति ।

1. मैया मोरी , मैं नहिं माखन खायो । भोर भयो गैयन के पाछे , मधुबन मोहि पठायो । चार पहर बंसीवट भटक्यो , सांझ परे घर आयो । मैं बालक बहियन कौ छोटौ , छींकौ केहि विधि पायो । ग्वाल - बाल सब बैर परे हैं , बरबस मुख लपटायो । तू जननी मन की अति भोरी , इनके कहे पतिपायो । जिय तेरे कछु भेद उपजि हैं , जानि परायो जायो । यह लै अपनी लकुटि कमरिया बहुतहिं नाच नचायो । सूरदास , तब बिंहसि जसोदा लै उर कंठ लगायो । 

सूरदास 

 शब्दार्थ -

 भोर = सुबह , पाछे पीछे , पठायो = भेज देती हो , पहर = प्रहर , एक दिन का चतुर्थांश , तीन घंटे का समय । भटक्यो = भटकता हूँ , आयो = आता हूँ , बहियन = भुजाओं के , केहि = किस , बैर परे हैं = शत्रु बन गये हैं , बरबस = बलपूर्वक । जबरदस्ती , लपटाओ = लगा देते हैं , जिय = मन , भेद उपजि हैं भेद ( अन्तर ) उत्पन्न होगा , जानि- जानकर , परायो जायो = दूसरे ने पैदा किया , लकुटि = लाठी , कमरिया = कम्बल । कमरी , बिहसि = इसका , उर = हृदय । मन । छाती , कंठ = गला 

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के ' काव्य माधुरी ' संकलित पाठ से लिया गया है । इस पद्य के रचयिता महाकवि सूरदास जी हैं ।

 प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में श्री कृष्ण की बाल सुलभ प्रवृत्ति का वर्णन कवि ने किया है । 

व्याख्या - श्रीकृष्ण माता यशोदा से मैंने माखन चोरी नहीं की है , इसकी सफाई देते हुए कहते हैं कि हे माता ! मैंने माखन नहीं खाया है । सुबह होते ही तुम मुझे गायों के पीछे मधुबन भेज देती हो , सुबह से लेकर शाम तक चारों प्रहर ( बारह घंटे ) मैं बंसीवट में गायों को चराते हुए भटकता रहता हूँ तथा शाम होने पर ही घर आता हूँ । मैं बालक हूँ मेरी भुजाएँ भी छोटी हैं फिर ऊँचाई पर लटकते हुए छींके को भला मैं किस विधि से पा सकता हूँ । सभी ग्वाल - बाल मेरे शत्रु बन गये हैं , जबरदस्ती ( बलपूर्वक ) मेरे मुख में मक्खन लगा देते हैं , और माता , तुम न की अत्यधिक भोली हो इनकी बातों पर विश्वास कर लेती हो । पराया का उत्पन्न हुआ जानकर तुम्हारे मत में दाऊ ( बलदाऊ ) और मुझमें भेद उत्पन्न हो जाता है । इसलिए तुम अपनी लाठी और कमरी ( कम्बल ) पकड़ो , मैंने बहुत नाच नाचलिया या मुझे तूने बहुत नाच नचाया । सूरदास जी कहते हैं कि बाल श्रीकृष्ण की ऐसी बातों को सुनकर माता यशोदा , हँसकर उन्हें अपने हृदय और गले से लगा लेती हैं ।

2. बैठी सगुन मनावत माता । कब अइहैं मेरे लाल कुशल घर , कहहु काग फुरि बाता ॥

 दूध - भात की दोनी दैहाँ , सोने चोंच मढ़ेहों । जब सिय सहित बिलोकि नयन भरि , राम लखन उर लैहों ॥

अवधि समीप जानि जननी जिय , अति आतुर अकुलानी । गनक बुलाइ पाँय परि पूछति , प्रेम मगन मृदु बानी ॥

तेहि अवसर कोउ भरत निकट ते , समाचार लै आयो । प्रभु आगमन सुनत तुलसी मनो , मीन मरत जल पायो ॥ ।

  शब्दार्थ- 

सगुन- शुभ समय , परमात्मा-- साकार ब्रह्म , अहँ = आएँगें , लाल = बेटा , कहहु -कहो । बताओ , काग -कौआ , फुरि = सच्ची , दोनी- द्रोणी , दैहाँ -दूँगी , मढ़हों- मढ़ाऊँगी , लगवा दूँगी , बिलोकि = देखकर , नयन भरि = भरेनयन , अच्छी तरह , उरलैहों- छाती से लगा लूँगी , अवधि = समय , जानि जानकर , जननी -माता , आतुर- अधीर । उतावला , अकुलानी = व्याकुल हो उठता है , गनक- गणक , ज्योतिषी , पाँय परि = पाँव पड़कर , प्रणाम करके , मृदु बानी मधुर बाणी , तेहि अवसर = उसी समय , कोउ -कोईस , निकटते समीप से , लै आयो = ले आया , मनो = मानो , मीन -मछली , मरत- मरती हुई । 

सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के संकलित पाठ ' काव्य - माधुरी ' से अवतरित है । इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं ।

प्रसंग- राम के वन से वापस आने की अवधि समीप आ गयी है उस समय माता कौशल्या के हृदय की अधीरता एवं व्याकुलता का कवि ने यहाँ वर्णन किया है ।

व्याख्या - कवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि माता कौशल्या बैठी हुई सगुन मनाती हुई कौए से पूछती है- हे काग ! मुझे सच बताओ मेरे लाल ( राम ) सकुशल घर कब आयेंगे ? जब मैं सीता सहित राम और लक्ष्मण को भर नेत्र देखकर अपने हृदय ( छाती ) से लगा लूँगी तब मैं तुम्हें द्रोणी भर दूध - भात दूँगी और तुम्हारी चोंच को सोने से मढ़वा दूंगी । राम के वन से वापस आने के समय को समीप जानकर माता कौशल्या का हृदय अत्यधिक अधीर एवं व्याकुल हो रहा है । वे ज्योतिषी बुलाकर उसके पैर पड़कर ( प्रणाम करके ) रामादि के प्रेम में मग्न हुई मधुर बाणी में उनके वन से आने के बारे में उनसे पूछती हैं । उसी समय कोई भरत के पास सीता सहित राम और लक्ष्मण के आने का समाचार ले आया । तुलसीदास जी कहते हैं कि मेरे प्रभु के आगमन को सुनकर उनकी वही स्थिति हुई मानो मर रही मीन ( मछली ) को जल मिल गया हो । 

मानुष हाँ तो वही रसखानि , बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन । 

जौ पशु हाँ तो कह बस मेरौ , चरौं नित नंद की धेनु मझारन ॥

 पाहन हाँ तो वही गिरि कौ , जो धरयाँ कर छत्र पुरन्दर कारन ।

 जो खग हाँ तो बसेरौ करौं नित , कालिन्दी कुल कदम्ब की डारन ॥

 रसखान

 शब्दार्थ-

 मानुष- मनुष्य, ग्वारन- ग्वालों ,  , हौं- होऊँ , बसौं- निवास करूँ , पसु हौं-

 पशु होऊँ , चरौं- चरुँ , धेनु मँझारन = गायों के बीच में , पाहन = पत्थर , धरयौ = धारण किया , कर = हाथ , छत्र- छत्ता , पुरन्दर = इन्द्र , कारन- कारण , खग -पक्षी , गिरि = पहाड़ , बसेरौ करौं -निवास करूँ , कालिन्दी = यमुना नदी , कुल = किनारा ।

 सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के संकलित पाठ ' काव्य - माधुरी ' से लिया गया है । इसके कवि रसखान जी हैं ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्य के कवि ने श्रीकृष्ण से अपने अनन्य प्रेम को व्यक्त किया है ।

 व्याख्या - कवि अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहता है कि हे ईश्वर यदि मैं पुनर्जन्म में मनुष्य होऊँ तो ब्रज के गोकुल गाँव में   ग्वाल बालों के बीच निवास करूँ । यदि मैं पशु के रूप में जन्म लूँ तो नन्द बाबा के गायों के बीच नित्य चरुँ ( विचरण करूँ ) । यदि पत्थर के रूप में मेरा पुनर्जन्म हो तो उसी गोवर्धन पहाड़ का अंश  बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र के कोप के कारण अपने हाथ में छत्र के रूप में धारण किया था । कवि आगे कहता है यदि मेरा जन्म पक्षी के रूप में हो तो यमुना नदी के किनारे उन कदम्ब की डालों पर निवास करूँ जिन पर श्री कृष्ण ने कभी बैठकर रास किये थे ।

 हमार का करै हाँसी लोग ।

 मन मोर लागे है सतगुरु से , भला होय के खोट ॥

 जब से सतगुरु ज्ञान दये हे , चले न केहू के जोर ।

 मात रिसाई पिता रिसाई , रिसाय बटोहिया लोग ॥ 

ज्ञान खड़ग तिरगुन कौ मारौ , पाँच पचीसो चोर ।

अब तौ मोहि ऐसन बन आये , सतगुरु रचे संजोग ।

आवत साथ बहुत सुख लार्गे , जात बियापे रोग । 

धरमदास बिनवै कर जोरो , सुनौ हो बंदी छोर ॥ 

जाके पद त्रय लोक से न्यारा , सो साहब कस होय ॥ 

धरमदास 

 शब्दार्थ-

हमार = हमारा , का- क्या , हाँसी- हँसी मजाक ,भला = अच्छा , होय = हो , खोट -बुरा , के = की , दये हैं = दिया है , केहू = किसी , जोर = बस , ताकत , रिसाई- नाराज हुए, तिरगुन = तीन गुण ( सत्व , रजस् एवं तमस ) , खड़ग = तलवार , पचीसो चोर --पचीसों इन्द्रिय रूपी चोर , ज्ञानेन्द्रिय = कर्मेन्द्रियादि , बियापे = प्रभावित करे । ग्रसित करे , अनुभव होता है , बिनवै- विनती करता है , बंदी छोर = बंधन खोलने वाला , मुक्ति देने वाला, संजोग = सुअवसर , बटोहिया = राहगीर , साहब = भगवान ।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के संकलित पाठ ' काव्य माधुरी ' से अवतरित है । इसके कवि धरमदास जी हैं ।

व्याख्या -- कवि कहता है कि हमारी लोग क्या हँसी करेंगें ( उड़ायेंगें ) । चाहे बुरा हो अथवा भला मेरा मन तो सतगुरु में लग गया है । जब से मेरे सतगुरु ने मुझे ज्ञान प्रदान किया है , मुझ पर किसी की जबरदस्ती नहीं चलती है । माता नाराज हुई , पिता नाराज हुए , राहगीर लोग भी मुझसे नाराज हो गये । परन्तु मैंने ज्ञानरूपी तलवार से तीनों गुणों ( सत्व , रजस् एवं तमस् ) को एवं पच्चीस इन्द्रिय ( ज्ञानेन्द्रिय कर्मेन्द्रिय आदि ) रूपी चोरों को मार दिया अर्थात् माया - मोहादि से परे मेरे लिए मेरे सतगुरु ने ऐसा सुअवसर बनाया कि अब मुझे वही अच्छा लगता है । अब उनके साथ रहने पर बहुत सुख मिलता है और यहाँ से जाने पर बीमारी का अनुभव अर्थात् अच्छा नहीं लगता है । धरमदास कवि कहते हैं कि मैं दोनों हाथ जोड़कर उस बन्धन मुक्त करने वाले की विनती  करता हूँ । जिनके चरण तीनों लोकों से दिव्य हैं वह ईश्वर कैसा  होगा ? अर्थात् वह ईश्वर भी अद्भुत ही होगा । 

अभ्यास

 पाठ से

प्रश्न 1. माखन न खाने की सफाई कृष्ण किस प्रकार देते हैं?

उत्तर - माखन न खाने की सफाई में कृष्ण कहते हैं कि हे माता ! मैंने माखन नहीं खाया है । सुबह होते ही तुम मुझे गायों के पीछे मधुबन भेज देती हो । मैं दिन भर उनके साथ बंशीवट में भटकता हुआ शाम को ही घर वापस आता हूँ । मैं बालक हूँ मेरी भुजाएँ छोटी हैं एवं छींके तक पहुँचने योग्य नहीं हैं । ये सभी ग्वाल बाल मेरे शत्रु बन गये हैं जो जबर्दस्ती माखन को मेरे मुख में लगा देते हैं ।

 प्रश्न 2. अपने बेटे कृष्ण की किन बातों को सुनकर यशोदा हँस दी ? 

उत्तर- माता ! तुम मन की अत्यधिक भोली हो , इनकी बातों पर विश्वास भी कर लोगी । फिर पराये से उत्पन्न होने के कारण कुछ अन्तर भी तुम्हारे मन में उत्पन्न होगा अतएव तुम अपनी ये लाठी एवं कमरी सँभालो अब तक मुझे बहुत नचा लिया । ” बाल कृष्ण के मुख से इन बातों को सुनकर ही माता यशोदा हँस दी ।

 प्रश्न 3. ' काग तेरी चोंच को सोने से मढ़वा दूंगी ' कौशल्या कौएँ को सम्बोधित करती हुई यह क्यों कहती है ?

उत्तर- हमारे देश में ऐसी मान्यता है कि कौआ किसी प्रिय के घर आने की सूचना प्रातः ही दे देता है । राम वनवास की अवधि पूर्ण हो चुकी है । माता कौशल्या की मुंडेर पर बैठा हुआ कौआ ' काँकाँव ' कर रहा है । इसीलिए माता कौशल्या कौए को सम्बोधित करती हुई कहती हैं कि ' काग तेरी चोंच को सोने से मढ़वा दूंगी ' यदि मेरे लाल सीता एवं लक्ष्मण के साथ सकुशल घर आ जायेंगे ।

प्रश्न 4. रसखान के बृजभूमि से प्रेम के दो उदाहरण लिखिए ।

उत्तर- रसखान कृष्ण के अनन्य भक्त कवि हैं । कृष्ण की बालपन की लीलाएँ ब्रजभूमि में ही सम्पन्न हुई हैं अतएव रसखान जी को- 

( i ) ब्रज का गोकुल गाँव बहुत प्रिय है , वे दुबारा जन्म होने पर ब्रज के गोकुल गाँव में जन्म लेकर ग्वाल - बालों के बीच निवास करना चाहते हैं ।

( ii ) पत्थर होने की स्थिति में वे गोवर्धन पहाड़ का अंश बनना चाहते हैं क्योंकि इन्द्र कोप के समय छत्र के रूप में कृष्ण ने इसे अपने हाथों से उठा रखा था और सम्पूर्ण बज को उसी के नीचे शरण मिली थी । 

प्रश्न 5. ' ज्ञान खड्ग तिरगुन को मारे ' से धरमदास जी का क्या आशय है ?

उत्तर- ' ज्ञान खड़ग निरगुन को मारे ' से धरमजी का आशय यह है कि उनके गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञान से उनके हृदय से तीनों गुण सत्व , रजस् एवं तमस् नष्ट हो गए हैं ।

प्रश्न 6. धर्मदास ने बंदी छोर ' किसे कहा है और क्यों ?

उत्तर- धर्मदास ने ' बंदी छोर ' ईश्वर को कहा है क्योंकि वही माया - मोह के सारे बंधन खोल कर हमें मुक्ति दिलाता है ।

प्रश्न 7. माँ अपने बच्चों के कुशल मंगल के लिए क्या क्या करती हैं ?

उत्तर- अपने बच्चों या पति के कुशल मंगल के लिए माँ भगवान की पूजा - पाठ करती हैं , व्रत एवं उपवास रखती हैं तथा मन्नते मनाती रहती हैं ।

 पाठ से आगे

प्रश्न 1. क्या कारण है कि रसखान पुनर्जन्म में किसी भी रूप में बज में जन्म लेने के लिए विधाता से याचना करते हैं ? उनकी इस याचना के बारे में विचार कर लिखिए ।

उत्तर- श्री कृष्ण का बचपन ब्रज की गलियों में , यमुना जी के किनारे गोपियों के साथ रास रचाते हुए अथवा वृन्दावन में ग्वाल बालों के साथ खेलते हुए और गायों को चराते हुए बीता है । रसखान कवि कृष्ण के अनन्य भक्त हैं अतः इन सबसे उनको स्वाभाविक लगाव है अतएव वे पुनर्जन्म में किसी भी रूप में ब्रज में ही जन्म लेने के लिए विधाता से याचना करते हैं ।

 प्रश्न 2. भावार्थ लिखिए

( क ) पाहन हाँ तो वही गिरि कौ , जो धरयो कर छत्र पुरन्दर कारन । जो खग हों तो बसेरौ करौं , मिलि कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन ।

उत्तर- यदि पत्थर के रूप में मेरा पुनर्जन्म हो तो उसी गोवर्धन पहाड़ का अंश 1 बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र के कोप के कारण अपने हाथ में छत्र के रूप में धारण किया था । कवि आगे कहता है यदि मेरा जन्म पक्षी के रूप में हो तो यमुना नदी के किनारे उन कदम्ब की डालों पर निवास करूँ जिन पर श्री कृष्ण ने कभी बैठकर रास किये थे ।

( ख ) जब से सद्गुरु ज्ञान दये है , चले न केहू के जोरह । मात रिसाई , पिता रिसाई , रिसाई बटोहिया लोग ।

उत्तर- जब से मेरे सतगुरु ने मुझे ज्ञान प्रदान किया है , मुझ पर किसी की जबरदस्ती नहीं चलती है । माता नाराज हुई , पिता नाराज हुए , राहगीर लोग भी मुझसे नाराज हो गये ।

प्रश्न . आप भी अपने बचपन में अपनी माँ से अवश्य रूठे होंगे । तब आपने कैसे कैसे रूप धारण किये होंगे सोच कर लिखिए ।

उत्तर- बचपन में किसी बात को लेकर जब मैं माँ से रूठता रोते हुए जमीन पर लोट जाता , अच्छी तरह से कंधी किये  अपने बालों को बिगाड़ देता था । खाना खाना एवं दूध पीना भी छोड़ देता था । माँ जब बहुत फुसलाती , मनाती तभी मैं मानता था ।

  भाषा से

प्रश्न 1. ' ज्ञान ' शब्द के ' न ' में ' ई ' की मात्रा लगाने से शब्द बना है ' ज्ञानी ' । ' दान ' , ' मान ' , ' ध्यान ' शब्दों में ' ई ' प्रत्यय लगाकर नये शब्द बनाइए और उनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।

उत्तर - दान + ई - दानी ।

वाक्य प्रयोग - कर्ण जैसे दानी बहुत कम होते हैं । 

मान + ई - मानी ।

वाक्य प्रयोग - मानी का सिर सदैव नीचा होता है ।

 ध्यान + ई- ध्यानी ।

वाक्य प्रयोग - ध्यानी सब कुछ सरलता से समझ लेते हैं । 

प्रश्न 2. इन शब्दों को छत्तीसगढ़ी बोली में लिखिए ।

पायो = पाय

उत्तर- दूसरा- दूसर

गाय = गऊ / गौ

कछु - कछु/थोरकन

परायो-दूसर

लगन- मन / मुहरत ।

पायो- पाय

निकट- तिर

बहियन- बांहें

सिर -मूड़

प्रश्न 3. इस पाठ में अनेक तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है । निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए।

सोना - स्वर्ण

नाच - नृत्य

साँझ , सायं

दूध - दुग्ध

पाँय -पाद

चोंच- चञ्चु

छुद्र - क्षुद्र । 

प्रश्न 4. ' जानि जननी जिय ' में ' ज ' की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है । इस पाठ में से अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए ।

उत्तर- ( i ) गनक बलाइ पाँय परि पूछति , प्रेम मगन मृदु बानी । 

( ii ) जो खग हों तो बसेरौ कराँ , मिलि कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन । 

( iii ) कब अइहैं मेरे लाल कुसल घर , कहहु काग फुरि बाता ।

 उपर्युक्त उदाहरणों में क्रमश : ( i ) में ' प ' एवं ' ब ' वर्ण ,

 ( ii ) ' क ' वर्ण एवं

 ( iii ) ' क ' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है । 

प्रश्न 5. नीचे लिखी काव्य पंक्तियों को छत्तसगढ़ी में स्पष्ट कीजिए

( क ) यह लै अपनी लकुटि कमरिया , बहुतहिँ नाच नचायो । 

उत्तर - तेह अब्बड़ नचा डारै , तै अपन लठठी अठ कम्बल ला धर ।

( ख ) कब अड़हैं मेरे लाल कुसल घर कहहु काग फुरि बाता । । च 

उत्तर- मोर लइका ( बेटा ) ह बने बने घर कब व , कवाँ तेह सत - सत बता।

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