पाठ 11 कोई नहीं पराया
- श्री गोपाल दास नीरज
शब्दार्थ
अभिमान=गर्वमनुजत्व = मानवता/ आदमीयत , सकर =समस्त संपूर्ण, अमरत्व = अमरता,
सुकुमार=कोमल , दलित= दली गई/ कुचली गई,
घुल=रज, उपवन=बगीचा/उघान
1. कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है।
मैं न बंधा हूं देश काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं ना खड़ा हूं जात पात की ऊंची नीची भीड़ में,
मेरा धर्म ना कुछ स्याही शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूं ही प्यारा है तो घर में राम है,
मुझसे तू ना कहो मंदिर मस्जिद पर सर मैं टेक दुँ,
मेरा तो आराध्य आदमी देवालय हर द्वार है ।
कोई नहीं पराया मेरा घर संसार है।।
सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक भारती कक्षा सातवीं के पाठ11 कोई नहीं पराया से लिया गया है। इसके कवि श्री गोपालदास नीरज जी है।
प्रसंग- सच्चे प्यार में ही घर घर में राम के दर्शन होते हैं। व्याख्या- कवि संपूर्ण संपूर्ण संसार को ही अपना घर मानते हुए कहता है कि मेरे लिए कोई भी पराया है मैं अपने पराये की भावना से परे न देश-काल की सीमाओं में बँघा हुआ हूं और ना ही मैं जाती पाती ऊंच-नीच आदि को मानता हूं मेरा धर्म मात्र स्याही और शब्दों का गुलाम है मेरा यही कहना है कि जहां सच्चा प्यार है वही घर घर में राम दिखाई देता है इसलिए तुम मुझे किसी मंदिर या मस्जिद में माथा टेकने झुकते के लिए मत कहो मेरा पूज्य देवता तो आदमी ही है मेरे लिए हर घर मंदिर है मेरे लिए कोई भी पराया नहीं सब अपने हाथ क्योंकि मैं संपूर्ण संसार के अपना घर समझता हूं।
2. कहीं रहे मुझको प्यारा यह इंसान हैं ,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत बहुत अभिमान है,
अरे नही देवत्य मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़कर प्यार नहीं, स्वीकार सकल अमरत्व भी,
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग सुख की सुकुमार कहानियां
मेरी घरती सौ - सौ स्वर्गो से ज्यादा सुकुमार है। कोई नहीं पराया,मेरा घर संसार है।।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक भारती कक्षा सातवीं के पाठ11 कोई नहीं पराया से लिया गया है। इसके कवि श्री गोपालदास नीरज जी है।
प्रसंग- कवि ने मानवता की सर्वोच्च माना है। उसी का वर्णन है।
व्याख्या - कवि कहता है कि कोई नहीं इंसान कहीं और कैसे भी रहता हो यदि उनमें इंसानियत है तो वह हमें प्रिय है मैं अपनी मानवता पर गर्व का अनुभव करता हूं क्योंकि मुझे देवत्व मनावता ही अच्छी लगती है मुझे इस संसार में प्रेम को छोड़ कुछ भी नहीं यहां तक अमरत्व अमृता भी स्वीकार नहीं है इसलिए मुझे स्वर्ग के सुख की मधुर कहानियां मत सुना प्यार मोहब्बत भाईचारा आदि से युक्त मेरी इस धरती का सुख स्वर्ग सुख से 100 गुना अधिक मधुर एवं सुखदाई है।
3. मैं सिखलाता हूं की जीओ और जीने दो संसार में ,
जितना ज्यादा बाट सको तुम बांटो अपने प्यार को ,
इस तरह से तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी चलो,
इस तरह कुचल ना जाए पग से कोई फूल भी,
सूख ना तुम्हारा सुख केवल जग का भी इनमें भाग है ,
फूल डाल का पीछे पहले उपवन का सिंगार है ,
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है।।
सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक भारती कक्षा सातवीं के पाठ11 कोई नहीं पराया से लिया गया है। इसके कवि श्री गोपालदास नीरज जी है।
प्रसंग- स्वयं के भाग में संसार का सुख भाग निहित होता है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं जाऊं और जीने दो की सीख देता हूं आप लोग नफरत को छोड़ जितना हो सके अपने प्यार को बांटे और इस तरह से हंसे की डाली गई धूल रोज भी आप के साथ हंसने लगे अर्थात जो सदैव सताए गए प्रगति पथ से बिछड़ गए लोग हैं वे भी तुम्हारे बराबर आ जाए तुम्हारे साथ बैठकर हँस बोल सके तुम इस तरह संभल कर चलो की फूल तुम्हारे पैरों तले ना कुचला जाए तुम्हें इस बात का सतत ध्यान रहे कि जिसे तुम मात्र अपना सुख भाग समझ रहे हो उसी में पहले संसार का सुख भाग उसी प्रकार निहित है जिस प्रकार पुष्प उद्यान की शोभा पहले बनाते हैं डाल की सुबह बाद में बनने हैं ।
अभ्यास
पाठ से
प्रश्न 1. कवि को मानवता पर क्यों अभिमान है?
उत्तर- कवि को मानवता पर इसलिए अभिमान है क्योंकि मुझे देवत्व नहीं मानवता अच्छी लगती है कवि कहते हैं कि कोई भी इंसान कहीं भी और कैसे भी रहता हो यदि उनमें इंसानियत है तो वह हमें प्रिय है।
प्रश्न 2. जात पात की दीवारों में मानवता को क्या हानि पहुंचाई है?
उत्तर- जात पात की दीवारों में मानवता को बहुत हानि पहुंचाई है जात-पात की संकीर्ण भावना ने लोगों के बीच नफरत की ऐसी दीवारें खड़ी कर दी है कि आए दिन इस नाम से दंगे होते हैं रहते हैं जिनमें हजारों आदमी मारे जाते हैं कवि इस भावना को समाप्त करना चाहता है।
प्रश्न 3. स्वर्ग की सुकुमार कहानियों को कवि क्यों नहीं सुनना चाहता है?
उत्तर- स्वर्ग की सुकुमार कहानियों को कवि इसलिए नहीं सुनना चाहते हैं क्योंकि धरती में सुख को स्वर्ग से भी अधिक सुकुमार कहा जाता है।
प्रश्न 4. कवि संसार को क्या सिखाना चाहता है ?
उत्तर- कवि संसार को मिलजुल कर रहने जाति धर्म से ऊपर मानव धर्म को सर्वोपरि मानने के लिए कहते हैं कवि के अनुसार हम सब ईश्वर की संतान हैं इसलिए भाई भाई हैं आये दिन जाति धर्म और सांप्रदायिकता के नाम पर होने वाले दंगे और नफरत की दीवारों को तोड़ना सिखाना चाहते हैं।
प्रश्न 5. 'जंग लगी जंजीर' किसे और क्यों कहा गया हैं?
उत्तर- कवि ने 'जंग लगी जंजीर' अपने पराए से ग्रसित भावना को कहा है और ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि अपने पराए की भावना में फंसा व्यक्ति उसी प्रकार मानवता को नष्ट करता है जिस प्रकार जंग (मुर्चा) लोहे की जंजीर को खा जाती है।
प्रश्न 6. धर्म को कवि ने कुछ स्याह शब्दों का गुलाम क्यों कहा है?
उत्तर-कवि का मानना है कि जहाँ पर प्रेम है, वहीं ईश्वर है। ईश्वर तो सभी के हृदय में निवास करते हैं उसे अन्यत्र ढूँढ़ने की क्या आवश्यकता है। वे पुस्तकों में लिखी धर्म की व्याख्या को स्वीकार नहीं करते हैं।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. कवि देवत्व और अमरत्व के स्थान पर मनुष्यत्व को, स्वीकारने की बात क्यों करता है?
उत्तर - कवि ने देवत्व और अमरत्व के स्थान पर मनुष्यत्व को स्वीकार किया है क्योंकि कवि के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी हैं, वे मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं। देवत्व और अमरत्व को प्राप्त करने के बाद वह मनुष्य (ईश्वर) की सेवा से वंचित हो जाएगा, अतः मनुष्य को देवत्व और अमरत्व से बढ़कर कहा है।
प्रश्न 2. कविताएँ सभी जातियों और धर्म में प्यार और सद्भाव का संदेश देती हैं, परंतु हमारे समाज में ऐसा देखने को क्यों नहीं मिलता? साथियों से बात कर अपनी समझ को लिखिए।
उत्तर- क्योंकि हमारा समाज आज जातीय संकीर्णताओं का शिकार है। मानवीय मूल्य जातिगत स्वार्थ के आगे बौने साबित हो रहें हैं जिससे आप समाज मे मानवीय गुणों का निरंतर हास हो रहा है। लोग देशहित की नहीं जातीय हित को ज्यादा महत्व देते हैं।
प्रश्न 3. कवि के मनोभावों को सार्थक करते हुए अगर हर व्यक्ति संसार को अपना घर मानने लगे तो हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज की दशा/स्थिति कैसी होगी? चर्चा कर लिखिए ?
उत्तर-कवि के मनोभावों को सार्थक करते हुए अगर हर व्यक्ति संसार को अपना घर मानने लगे तो हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज की शोभा देखने लायक होगी। स्वर्ग से भी सुंदर सभी सुख-संसाधनों से युक्त समाज होगा। प्रेम, दया सौहार्द्रता, भाई-चारा, मैत्री भाव जैसे मानवीय गुणों से युक्त समाज निश्चित ही विश्व बंधुत्व की बात को सार्थक करेगा।
प्रश्न 4. कवि बनावटी दुनिया को छोड़कर वास्तविक जीवन में मिल-जुलकर रहने पर जोर दे रहा है। यहाँ बनावटी दुनियाँ और वास्तविक जीवन से आप क्या समझते हैं लिखिए?
उत्तर- बनावटी दुनिया से कवि का तात्पर्य भौतिकवाद समाज और दिखावे से है जबकि वास्तविक जीवन से तात्पर्य समाज में प्रेम और सौहाद्र से युक्त सुख-शांति से सरलतापूर्वक जीवन व्यतीत करना है।
प्रश्न 5. आप विचार कर लिखिए कि मनुष्य-मनुष्य के बीच नफरत की दीवारों को कौन खड़ा करता है और इस संदर्भ में हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए?
उत्तर - जातिगत संकीर्णताओं से युक्त मनः स्थिति के कुछ स्वार्थी लोग मनुष्यों के बीच नफरत की दीवारों को खड़ा करते हैं। हमें चाहिए कि ऐसे लोगों से दूर रहें और उनकी इस कुत्सित (निंदित) भावना को जो देश को बाँटने में लगे हैं, उसे सफल ना होने दें।
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