इतिहास कक्षा छठवीं अध्याय 2आदि मानव /aadi manav/"History/

 



आदिमानव का जीवन पूर्णतः वनों पर आधारित था ।वे वनों से कंदमूल ,फल आदि इकठ्ठा कर एवं शिकार कर उनका मांस खाते थे।

 आदिमानव  समूह बनाकर रहते थे ।पर वे एक निश्चित स्थान पर नही रहते थे।वे एक स्थान पर कन्द -मूल ,फल,शिकार इत्यादि समाप्त हो जाने पर दूसरी दिशा की ओर चल देते थे।

 आदिमानव पेड़ों की पत्तियों और छालों से  तथा जानवरों की खालों  का उपयोग शरीर  ढँकने के लिये करते थे।

वे लकड़ी,सीप, शंख,चमकीले पत्थर एवम हड्डी का उपयोग आभूषण के रूप में करते थे।

पत्थरों के औजार

उन दिनों लोग धातुओं से परिचित नहीं थे।वे अपने आसपास  प्राप्त होने वाले पत्थरों का उपयोग हथियार बनाने के लिए करते थे। प्रारम्भ में वे बड़े पत्थरों से छोटी चिप्पियाँ निकालकर औज़ार बनाते थे पर बाद में पत्थरों की छोटी चिप्पियों को लकड़ी या हड्डियों में लगाकर उपयोगी हथियार बनाने लगे।

जानवरों के शिकार के लिए तीर और भाले भी बनाते जिसकी नोक पत्थरों के होते थे। औजार का उपयोग जमीन खोदकर कन्द- मूल   निकालने,अनाज इकठ्ठा करने,जानवरों की खाल निकालने के लिए करते थे।

आग

औजार बनाते समय दो पत्थरो के टकराने से निकली चिंगारी से आसपास की सूखी पतियों जल उठी होंगी जिससे हमारे पूर्वजों को  आग की जानकारी हुई होगी।

आग का उपयोग उनके द्वारा  जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करने के लिए,मांस को भूनकर खाने में एवं ठंड से बचने के लिए करते थे।

 सामूहिक जीवन

आदिमानव छोटे समूहों में रहते थे उनमें आपसी सहयोग की भावना थी।समुहों में कन्द-मूल,फल इत्यादी इकट्ठा करना महिलाओं और बच्चों का कार्य था जबकि शिकार का  कार्य पुरुष करते थे।

प्राप्त भोजन पर सबका समान अधिकार होता था।कोई अमीर अथवा गरीब नहीं था।  समूह में कार्य का बंटवारा भी नहीं था समूह के सभी  लोग  सभी तरह के कार्य करते थे जैसे - शिकार करना, औजार बनाना,कन्द-मूल इकट्ठा करना। धार्मिक रीति-रिवाज

 आदीमानव प्रकृति पर निर्भर थे इसलिए उन्हें वनों से सम्बंधित चीजों से अत्यधिक लगाव था। वे देवताओं पर विश्वास करते थे।वे मानते थे कि इनके खुश रहने पर उन्हें अच्छा शिकार और भोजन प्राप्त होगा।  इनको प्रसन्न करने के लिए वे  नावः-गान करते थे जिसमें शिकार का अभिनय करते थे।

ऐसे ही विश्वास के आधार पर गुफाओं की दीवारों पर चित्र भी बनाते थे। वे मानते थे कि इससे उन्हें शिकार में सफलता मिलेगी।

 आदिमानव ने अपने सूझबूझ से धरती संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जैसे - उन्होंने पता लगाया कि कौन से पेड़ पौधे उपयोगी ,कौन विषैले हैं। आग को नियंत्रित करना सीखा।

औजार बनाने के लिए उचित पत्थर और लकड़ी खोजे।जानवरों और पेड़-पौधों के गुणों की बारीकी से पहचाना।

 पालतू जानवर मनुष्य ने सबसे पहले कुत्ते को पाला। कुत्ता  शिकार में मदद करता था। खेती प्रारम्भ में  आदिमानव जंगलों से खाने की चीज़ें प्राप्त कर लेते थे।लेकिन बाद में इन्होंने खेती करना प्रारम्भ किया क्योंकि अब वे जान गए थे कि खा -कर फेकें बीज से नए पौधे उगते हैं। खेती की शुरुआत दस हज़ार वर्ष पूर्व हुई एवं भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी शुरुआत पाँच-छः हजार वर्ष पूर्व हुई। प्रारम्भ में ये एक ही जगह पर खेती नहीं करते थे।बल्कि यह जंगलों को जलाकर खेती करते तथा उसपर दो - तीन साल खेती करते फिर उत्पादन कम होने पर अन्यत्र खेती करते।इस प्रकार की खेती को झूम या स्थानांतरण खेती कहते हैं।

 खेती के कारण मानव जीवन मे बदलाव सम्भव हुआ। सभी के मेहनत से कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ।खेती करने के कारण उनका स्थाई रूप से निवास करना संभव हुआ। क्योंकि फसलों की बुआई से लेकर कटाई तक  में काफी  समय लग जाता था साथ ही खेतों में लगातार काम व रखवाली करना पड़ता था ।

इसलिए वे खेतों के आसपास लकड़ी,घास-फूस,मिट्टी के घर बनाकर स्थायी रूप से रहने लगे।

ये अपने घर नदियों,तालाबों, नालों के पास बनाते थे।जंगली जानवरों से रक्षा के लिए ये घर के चारों ओर बाड़े बनाते थे।अनाजों को रखने के लिये कोठे बनाने लगे,अनाज पकाने,दूध उबालने के लिए बर्तन बनाने लगे।

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