अन्नदाता/anndata

 




अन्नदाता

स्वेद भालों में कृषक के, ध्यान होना चाहिए।

नेक धरतीपुत्र तेरा, गान होना चाहिए।

अन्नदाता का धरा में, मान होना चाहिए..


             तपता तन

जेठ की तपती धरा में, हेतु साधन को चला।

फोड़ ढीले  चीर धरती, मेढ़ बाँधन को जला।

हैं पवन के तेज धारे, तन पसीना धार है।

उठ रही है तेज़ लपटें, रवि अनल की मार है।     

श्रृंगार सुरभि सोन बालि, धान होना चाहिए...

अन्नदाता का धरा में, मान होना चाहिए...

                 भीगता बदन

घोर बरखा तीव्र बूँदे, नाद गर्जन का सहे।

खेत को अवलोकता जो, वज्र वर्जन का सहे।

शूल कांशी के चुभे हैं, देखो नंगे पाँव में।

कृषक कुंदन हो चला अब, तप रहा है ताव में।

जो उदर पोषण कराता, ध्यान होना चहिए...

अन्नदाता का धरा में, मान होना चाहिए...


                 टूटता मन

चौकसी में जो फसल के, एक प्रहरी सा खड़ा।

मोल माटी का बिका तो, वह फफककर रो पड़ा।

आपदा के काल में जब, बोझ ऋण बढ़ने लगे।

काल को अपना रहे जब, योजना ठगने लगे।

धर्म में चढ़ते चढ़ावे, दान होना चहिए...

अन्नदाता का धरा में, मान होना चाहिए...

स्वेद भालों में कृषक के, ध्यान होना चाहिए।

नेक धरतीपुत्र तेरा, गान होना चाहिए।

अन्नदाता का धरा में, मान होना चाहिए..

     

हरीश वर्मा

शा उ मा वि चन्दन नगर

प्रेमनगर सूरजपुर छ ग

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