हिंदी व्याकरण रस/रस की परिभाषा/रस के प्रकार/Hindi Grammar Ras/Ras Ki Pribhasha

 


रस किसे कहते है? 

काव्य में रस का अर्थ आनन्द माना गया है। साहित्य शास्त्र मे रस का अर्थ अलौकिक  आनन्द होता हैं। 
दूसरे शब्दों में जिसका आस्वादन किया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है अर्थात् काव्य को पढ़ने सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है। रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से होती है। 


रस की परिभाषा 

किसी काव्य या नाटक को पढ़ने,सुनने से मिलने वाला आनंद रस कहलाता है।

इसकी सँख्या 9/11मानी जाती है


कविताकहानीनाटक आदि पढ़ने, सुनने या देखने से पाठक  श्रोता एवं  दर्शक को   जो अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते है।
दूसरे शब्दों में " काव्य के पढ़ने सुनने अथवा उसका अभिनय देखने मे पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनंद मिलता है, वही काव्य मे रस कहलाता हैं। 


रस एवं उसके स्थायी भाव
1. श्रृंगार रस -       रति
2. हास्य रस -      हास 
3. करूण रस -     शोक
4. रौद्र रस -         क्रोध 
5. वीभत्स रस का - घृणा ,जुगुप्सा 
6. भयानक रस - डर,  भय 
7. अद्धभुत रस -     विस्मय 
8. वीर रस -      उत्साह 
9. शान्त रस -     निर्वेद 
10. वात्सल्य रस - प्रेम, ममता, वत्सल 

आचार्य भरत ने नाटक मे आठ रस माने है। परवर्ती आचार्यों ने शान्त रस को अतिरिक्त स्वीकृति देकर कुल नौ रसों की पहचान निश्चित की। काव्य मे महाकवि सूरदास ने वात्सल्य से संबंधित मधुर पद लिखे, तो एक अन्य  नया रस वात्सल्य रस की स्थापना हुई। 

स्थायी भाव

वह प्रधान भाव जिसकी अनुभूति काव्य या नाटक में प्रारंभ से अंत तक होता है।

 विभाव (कारण)

जिस व्यक्ति या पदार्थ के कारण स्थायी भाव जागृत होता है।

अनुभाव

स्थायी भाव को व्यक्त करने के लिए की जानेवाली शरीरिक चेष्ठा जिसमें अंग और वाणी का अभिनय शामिल है

संचारी भाव (व्याभिचारी भाव)

स्थाई भाव को पुष्ट करने वाला भाव जो स्थायी भाव के  साथ आते-जाते रहते हैं।

 रस

किसी काव्य या नाटक को पढ़कर प्राप्त आनंद की अनुभूति को रस कहते हैं।

 रस के  अंग

स्थायी भाव,विभाव, अनुभाव ,संचारी भाव।

 विभाव- स्थायी भाव जागृत होने का कारण।

आलंबन विभाव- 

आश्रय आलंबन- जिसके मन में स्थाई भाव जागृत हो।

विषयालम्बन - जिसके प्रति स्थायी भाव जागृत हो।

उद्दीपन विभाव - वह पदार्थ या परिस्थिति  जिसमें स्थायी भाव जागृत हो।

स्थायी भाव

वह प्रमुख भाव जिसकी अनुभूति काव्य में प्रारंभ से अंत तक होता है।

अनुभाव - स्थायी भाव जागृत होने पर उसे व्यक्त करने के लिए की जाने वाली शरीरिक चेष्ठा।

 संचारी भाव - स्थायी भाव की पुष्टि करने के लिए स्थायी भाव के साथ जागृत होनेवाले अन्य भाव।

श्रृंगार रस को "रस राज" कहा जाता है।

श्रृंगार रस-

नायक और नायिका के मिलन से उत्पन्न भाव का विभाव,अनुभाव और संचारी भाव  का संयोग होने  से  जो स्थायी भाव "रति"  जागृत होता है उसे "श्रृंगार रस" कहते हैं।

इसके दो भेद हैं -

1.संयोग श्रृंगार रस

2.वियोग श्रृंगार रस

श्रृंगार रस के अवयव

स्थायी भाव - रति 

आलंबन- नायक- नायिका

उद्दीपन - आलंबन का सौंदर्य, प्रकृति,बसंत ऋतु,बरसात, कोयल का कुंजन, भौरें का गुंजन,चाँदनी रात,रमणीय उपवन।

अनुभाव - अवलोकन,स्पर्श,आलिंगन, अश्रु बहाना, रुदन,लजाना,कटाक्ष।

संचारी भाव- उत्सुकता,जिज्ञासा,पीड़ा हर्ष,जड़ता,चपलता,अभिलाषा।

संयोग श्रृंगार -

जब नायक- नायिका के परस्पर मिलन स्पर्श, आलिंगन,या वार्तालाप का किसी काव्य या नाटक में वर्णन हो ,तो वह संयोग श्रृंगार होता है।

 उदाहरण

बतरस लालच लाल की मुरली धरि लुकाय।

सौंह करे भौहनि हँसे दें कहत नटी जाए।

 संयोग श्रृंगार के अवयव

स्थायी भाव - रति

आश्रय आलंबन - राधा रानी

विषयालम्बन - श्री कृष्ण

उद्दीपन  - बात के रस का लालच, बांसुरी मांगना।

अनुभाव - बाँसुरी छिपाना, हँसना, नट जाना।

संचारी भाव- हर्ष,कौतूहलता,चपलता।

वियोग श्रृंगार रस

प्रेम में अनुरक्त नायक-नायिका के मिलन का अभाव वियोग शृंगार कहलाता है।

उदाहरण

रे उद्धव ! मन नही है दस बीस,

एक हुतो सो गयो श्याम संग को आराध्ये ईश ।

वियोग श्रृंगार के अवयव

स्थायी भाव - रति

आश्रय आलंबन- गोपिकाएं

विषयालम्बन - श्री कृष्ण

उद्दीपन - श्री कृष्ण की दूरी, उद्धव का उपदेश।

अनुभाव - रुदन, विलाप ,कटाक्ष।

संचारी भाव - वेदना,पीड़ा, ।

करूण रस

किसी प्रिय व्यक्ति या वस्तु के विनाश या अनिष्ट की आशंका से जागे शोक स्थायी भाव का विभावादि से पुष्ट होने पर करूण रस  होता हैं। 

करुण रस के अवयव

स्थायी भाव- शोक

आश्रय आलंबन - जिसके हृदय में शोक जागृत हुआ हो।

विषय आलंबन - जिसके कारण स्थायी भाव (शोक) जागृत हुआ हो।

उद्दीपन - शोकाकुल वातावरण,दाह संस्कार,गरीबी,दुर्घटना,मृत्यु।

अनुभाव - आश्रय की शरीरिक चेष्ठाये- रुदन,चिखना, चिल्लाना,छाती पीटना,सिर पीटना।

संचारी भाव-विषाद, चिंता,त्रास,जड़ता, दीनता।

उदाहरण-

 "मणि खोए भुजंग- सी जननी,फन सा पटक रही थी शीश,

अंधी आज बनाकर मुझको न्याय किया तुमने जगदीश?'

 हाय सही न जाती मुझसे

अब आज भूख की ज्वाला।

कल से ही प्यास लगी है 

हो रहा हृदय मतवाला।

सुनती हूँ तू राजा है

मैं प्यारी बेटी तेरी

क्या दया न आती तुझको

यह दशा देखकर मेरी।

वीर रस

युद्व अथवा कठिन कार्य को करने के लिए जब हृदय में निहित स्थायी भाव "उत्साह" का प्रादुर्भाव हो तब वहाँ वीर रस की उत्पत्ति होती है।

वीर रस के अवयव

स्थायी भाव - उत्साह

आश्रय आलंबन - जिसके हृदय में स्थायी भाव" उत्साह " जागृत हो।

विषयालम्बन - जिसके कारण स्थायी भाव "उत्साह" जागे।

उद्दीपन -जिस परिस्थिति के कारण उत्साह जागृत हो- युद्धभूमि, रणभेरी की आवाज़, जयजयकार,शत्रु की ललकार।

अनुभाव - हुंकार भरना, दहाड़ मारना।

संचारि भाव- हर्ष,गर्व,उत्सुकता, उग्रता,आवेग।

उदाहरण- सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे।

यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे।

है औरों की तो बात क्या,गर्व मैं करता नहीं।

मामा और निज तात से भी युद्ध से डरता नहीं।

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